Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 71
________________ ( ६५ ) लज्जित हुई और मन ही मन अपने को धिक्कारने लगी । उसने तुरंत सेवकों से गर्म जल करने के लिए कहा पर क्षुल्लकजी ने तो अग्नि को स्तम्भित कर रक्खा था । लाख उद्योग करने पर भी न जली । तब रुक्मणी स्वयं उठी और आग जलाने लगी । उसका सारा शरीर पसीने से लथ पथ होगया, बाल बिखर गए, आंखों से पानी गिरने लगा पर आग न जली । इतने पर भी रुक्मणी के चित्त में विकार उत्पन्न न हुआ । तब क्षुल्लक महाराज ने कहा, हे माता यदि गर्म पानी नहीं है तो न सही, खाने ही को दे, मैं भूख के मारे मरा जाता हूं, जल्दी कर । रुक्मणी रक्खा हुआ पक्कान्न तलाश करने लगी पर महाराज ने पक्कान्न भी लोप कर दिया था । उसे केवल कृष्ण जी के १० लड्डू मिल गए । जिन लड्डुओं को कृष्ण जी केवल एक २ कर के खाते थे और एक भी कठिनता से पचा पाते थे, उन्हें ये क्षुल्लक देवता क्षणमात्र में पा गए । १० में से एक भी न बचा, फिर भी " और लाओ, और लाओ" कहते ही गए । रुक्मणी दूसरे घर में तलाश करने को गई पर जब कुछ न मिला तो बड़ी व्याकुल होने लगी । तब महाराज बोले बस, माता मैं संतुष्ट हो गया, अव रहने दे, और आचमन कर के बाहर उसी आसन पर आ बिराजे । ५

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