Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ ( ३२ ) कृपा करके मुझे आज्ञा दो, मैं जाकर ले भाता हूं, आप क्यों कष्ट उठाते हैं । बज्रदंष्ट्र तो यह चाहता ही था, उसने तुरंत आज्ञा दे दी । प्रद्युम्न निःशंक अंदर चला गया और बीच में पहुँच कर उसने ज़ोर से शब्द किया तथा पैरों से द्वार को धक्का द्विया । शब्द के सुनते ही भुजंग नाम का देव जागउठा और क्रोध से लाल होकर कुमार पर झपट कर बोला, अरे दुराचारी, अधम मनुष्य ! तूने मेरे पवित्र स्थान को क्यों अपवित्र किया ? क्या तू मुझे नहीं जानता, मैं तेरे अभी टुकड़े २ करे - डालता हूं और तुझे यमलोक पहुंचा देता हूं। कुमार ने धीरवीरता से उत्तर दिया, रे असुराधम ! मूढ़ ! क्यों वृथा गर्जता है । तुझ में कुछ बल हो तो आ, और मुझ से युद्ध कर | यह कहने की देर थी कि देव लाल पीली आंखें करके कुमार पर बड़े ज़ोर से झपटा। दोनों शूरवीरों का महाभयं - कर मल्लयुद्ध हुआ और दोनों बहुत देर तक लड़ते रहे। अंत में भुजंग देव हार गया और कुमार के चरणों में गिर कर बोला, हे नाथ ! मैं आपका चाकर हूं आप मेरे स्वामी हो, मुझ पर कृपा करो, मेरा अपराध क्षमा करो । इस प्रकार प्रसन्न करके देव ने कुमार को स्वर्णमय रत्न जटित सिंहासन पर बैठाया और विनय पूर्वक निवेदन किया कि महाराज ! मैं आपके लिये ही चिरकाल से निवास करता

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98