Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 56
________________ (५.) से रोहिणी और प्रज्ञप्ति विद्याओं की याचना की । यह सुन कर कनकमाला स्त्री चरित्र बनाकर रोने लगी और आंसू बहाती हुई बोली, हे नाथ ! उस पापी ने मुझे एक बार नहीं कई बार ठगा है । एक दिन मैंने प्यार में उसे अपनी दोनों विद्याएँ स्तनों में प्रवेश करके पिलादी थीं, हाय ! मैं नहीं जानती थी कि यह जवानी में ऐसा दुष्ट होगा। ऐसा कहकर कनकमाला गला फाड़ कर रोने लगी। राजा ने ये ढोंग देखकर रानी के सारे दुश्चरित्र जान लिये और मन में कहने लगा, अहो! स्त्री चरित्र कौन वर्णन कर सकता है । इसने मेरी विद्याएँ भी खोदी और पुत्रभीखी दिया । हा, इस जीवन से क्या प्रयोजन, अवतो मरना ही भला है । ऊंची स्वासें लेता हुआ संग्राम भूमि की ओर चला और वहां पहुंचकर क्रोध से दुःखी होकर कुमार से स्वयं लड़ने लगा, पर जीत न सका । शीघ्र कुमार ने उसे नागफाँस से बांध लिया । पश्चात् कुमार लज्जा के मारे कुछ नीचा मुँह करके सोचने लगा कि युद्ध में मैंने इतनी सेना को मायावश मूर्छित कर दिया है अब कोई उत्तम पुरुष आकर मेरे पिता को छुड़ा दे तो अच्छा है। इतने में ही नारदजी आकाश में नृत्य करते हुए और हर्षित होते हुए वहां आपहुँचे। उन्होंने आशीर्वाद दिया और

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