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( ३४ ) ते ही क्रोध से अरुण नेत्र किये हुए प्रगट हुआ और बोला, अरे पापी ! नराधम ! तेरी क्या मौत आई है जो तूने मेरे स्थान को अपवित्र किया । प्रद्युम्न ने उत्तर दिया, रे शठ ! मुर्ख ! क्यों बकबक करता है, यदि तू शूरवीर है, धीर है और रण कला में चतुर है तो आ, शीघ्र मुझ से युद्ध कर । इस पर दोनों में युद्ध होने लगा, परंतु देव हार गया । फिर तो वह भक्ति पूर्वक कुमार के चरणों में गिरपड़ा और चंवर छत्रादि देकर बोला, हे नाथ ! मैं आप का किंकर हूं, आप मेरे स्वामी हैं। तब कुमार उसे वहीं स्थापन करके और चंवर छत्रादि लेकर उस विकराल गुफा से बाहर निकल आया ।
जब राजकुमारों ने देखा कि प्रद्युम्न यहां से भी बचकर देव से पूजित होकर चला आया है तो वे उसे तीसरी नाग गुफा की ओर ले गए । वहां भी नागराज के साथ भयंकर युद्ध हुआ, परंतु अंत में कुमार की जय हुई । तब सर्पराज ने संतुष्ट होकर कुमार को नागशय्या, वीणा, कोमल आसन, सिंहासन, वस्त्र, आभूषण, तथा गृहकारिका और सैन्य रक्षिका ये दो विद्याएँ दक्षिणा में दी । कुमार भेट के पदार्थों को लेकर सुरक्षित बाहर चला आया । ___तदनंतर वे सब कुमार को एक भयंकर देव रक्षित बावड़ी दिखलाने को लेगए । बज्रदंष्ट्र बोला, जो कोई शंका रहित