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(८८) आर्त रौद्र ध्यान को सर्वथा त्याग दिया और धर्म, शुक्लध्यानको आदरपूर्वक करने लगा। दशधर्मों का यथोचित पालन किया। प्रतिक्रमण बंदनादि षट आवश्यकों को विधिपूर्वक किया। ___जो कामकुमार पहिले कभी फूलों की शय्या पर तकिये लगाकर सोते थे और किसी प्रकार का भी कष्ट नहीं सहते थे, वेही अब साधुवृत्ति से तृण पाषाण युक्त भूमि का सेवन करते हैं और शीत ऊष्णादि नाना प्रकार की परीषह सहन करते हैं । जो कामकुमार सोलह आभरण धारण करते थे, वेही अब द्वादशांग रूपी शृंगार से विभूषित ऐसे वीतरागी हो गए हैं कि उनके काम चेष्टा के अस्तित्व का लोग अनुमान भी नहीं करसकते। जो कामकुमार मदोन्मत्त अगणित सेनायुक्त शत्रुओं का गर्व गलित करते थे, वेही अब दयावान और जितेंद्रिय हो कर षट काय के जीवों की रक्षा करने में तत्पर रहते हैं, और संसारको अपने समान देखते हैं। पूर्व में जो प्रभुता के रस में छके हुए धन, धान्य, हाथी, घोड़े तथा स्वर्णादि से तृप्त नहीं होते थे वेही अब सब झगड़ों से मुक्त होकर और समस्त परिग्रहों को छोड़कर अंतरात्मा के रंग में रंगे हुए रहते हैं जिन को अपने शरीर से भी मोह नहीं।
तीन प्रकार की गुप्ति और पांच प्रकार की समितियों का पालन करते हुए वे धीर वीर योगीश्वर बारहवें दिन