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(७४) . देती, कभी कृष्ण की सेना कुमारकी सेना को गिरा देती। इस तरह यह घोर संग्राम बहुत देर तक होता रहा, पर अंत में प्रद्युम्न ने अपनी माया से पांडवादि शूरवीरों को बल्देवादि सहित मारडाला। ___ बड़े भाई की मृत्यु के समाचार सुनकर कृष्णजी बड़े क्रोधित हुए। उन्हों ने अपने रथको कुमारकी ओर शीघ्रता से बढ़ाया और बंधुवों के वियोग से उत्तेजित होकर शत्रुको बल पूर्वक नष्ट करने की इच्छा करने लगे । परंतु उसी समय उनकी दाहिनी आंख, और दाहिनी भुजा फड़कने लगी जिस से उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि अब बंधुजनों के नष्ट होनेपर क्या इष्ट प्राप्ति होगी।
कुमार के निकट पहुँचते ही उनका हृदय स्नेह से भर आया और स्वयं प्रीति उत्पन्न होगई । तब उन्होंने कुमारसे कहा कि हे विलक्षण शत्रु, यद्यपि तूने मेरा सर्वनाश करदिया तथापि तुझ पर न जाने क्यों मेरा अंतरंगस्नेह बढ़ता जाता है अतएव तू मेरी गुणवती भार्या को मुझे देदे और मेरे आगे से जीता हुआ कुशल पूर्वक चला जा। कुमार ने हंसकर उत्तर दिया, हे सुभट शिरोमणि, यह कौनसा स्नेह का अवसर है, यह मारने काटने का समय है । यदि तुम युद्ध नहीं करसकते तो मुझ से कहो कि हे धीरवीर ! मुझे स्त्री की भिक्षा प्रदान