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वे आकाश में ऊपर विराजते हैं । उनके पास आपकी (मेरी) बहू भी है । मैंने हस्तिनापुर के राजा दुर्योधन की पुत्री उदधिकुमारी को मार्ग में कौरवों से जीतकर लेली है ।
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इसके पश्चात् कुमार ने भानुकुमार का तिरस्कार, सत्य भामा के बगीचे तथा वन का विनाश, रथ का तोड़ना, मेंढ़े स वसुदेवजी की टांग तुड़ाना और भोजन बमन करके सत्यभामा की बिडम्बना करना आदि सब लीलाएं माता को कह सुनाई । ये बातें सुनकर रुक्मणी को बड़ा आनंद हुआ और कहने लगी कि बेटा, उन्हें शीघ्र यहां ले आ और मुझे दिखला ।
कुमार - माता, अभी मैं यहां किसी से भी नहीं मिला ।
माता - तो बेटा, जा अपने पिता तथा यादवों से राजसभा में मिला । तेरे पिता श्रीकृष्ण महाराज वहीं यादवों से घिरे हुए बैठे होंगे । प्रणाम करके अपना परिचय देदेना ।
कुमार - माता, यह बात तेरे पुत्र के योग्य नहीं है । मैं स्वयं जाकर कैसे कहूं कि मैं आपका पुत्र हूं। मैं पहिले पिता तथा बंधुओं से युद्ध करके नाना प्रकार के वाक्यों से उनकी तर्जना करके अपना पराक्रम दिखलाऊंगा पीछे अपना नाम प्रगट करूंगा । तब वे स्वयं सब मुझे जान लेंगे अब घर २ जाकर किस २ से अपना हाल कहता फिरूं ।