Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ ( ६० ) के बल से एक अति सुंदर शीघ्रगामी घोड़ा बनाया और आप स्वयं बहुतही बूढ़ा, हाथ पैर से कांपता हुआ घोड़ा बेचने वाला बन गया । घोड़े को हाथ से पकड़े हुए भानुकुमार के निकट गया । भानुकुमार घोड़े को देखते ही उस पर मोहित होगया और बुढ्ढे से उसका मूल्य पूछने लगा । बुड्ढे ने उत्तर दिया, महाराज यह घोड़ा मैं आप के लिए ही लाया हूं, इसका मूल्य एक करोड़ मुहर लूंगा । यह इसी मूल्य का घोड़ा है, आप इस की परीक्षा करके देखलें । भानुकुमार परीक्षार्थ घोड़े पर सवार होगया और उसे इधर उधर फिराने लगा । मायामई घोड़े ने सीधे और टेढ़े पैरों से चलकर क्षण मात्र में कुमार के मन को रंजायमान कर दिया, परंतु थोड़ी देर में उसने ऐसी गति धारण की और इतनी वेगता से चलने लगा कि भानुकुमार के समस्त वस्त्राभूषण पृथ्वी पर गिरगए और कुमार को भी ज़मीन पर पटक दिया और बुट्टे के पास जाकर खड़ा हो गया। बुड्ढा खिलखिलाकर हंसने लगा और कहने लगा कि बस राजकुमार, मैंने जान लिया कि तुम अश्व चालनकी शिक्षा में निरे मूर्ख हो । राजकुमारों की परीक्षा करते समय पहिले उनकी अश्वकला ही देखी जाती हैं । जब तुम इसी में शून्य हो तो राज्य क्या करोगे । राजकुमार ने क्रोधित होकर उत्तर दिया, अरे मूर्ख क्यों वृथा हंसता है, अपने को तो देख

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98