Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 45
________________ ( ३३ ) यह देखकर राजकुमार थक गए और अपने बड़े भाई बज्रदंष्ट्र से कहने लगे कि अब हम इसे मारे बिना न छोड़ेंगे, यह जहां जाता है वहां से लाभही प्राप्त करके आता है । बज्रदंष्ट्र ने उत्तर दिया, भाइयो ! घबराओ मत, अब भी दो स्थान और बाक़ी हैं, वहां ले जाकर हम इस दुष्ट को अवश्य मार डालेंगे । तब वे उसे विपुल नामक वन में लेगए । वहां जयंत नाम का बड़ा भारी पर्वत था । प्रद्युम्नकुमार तुरंत वन में घुस गया और वहां नदी के किनारे एक वृक्ष के नीचे पड़ी हुई एक शिला पर एक सर्वाग सुंदरी युवती को तपस्या करते हुए देखा। उसके रूप लावण्य को देखते ही कुमार काम के वाण से घायल होकर व्यग्रचित्त हो गया और वहीं पर बैठ गया । इतने ही में वसंत नाम का एक देव वहां आया । वह कुमार के चरणकमलों को नमस्कार करके समीप बैठ गया । कुमार के प्रश्न करने पर देव ने उस युवती का सारा हाल सुनाया और कहने लगा कि यह विद्याधरों के स्वामी प्रभंजन की पुत्री रती है । यह आप ही की बाट में यहां तप कर रही है । एक मुनिराज ने कहा था कि यह प्रद्युम्न कुमार की प्राणबल्लभा होगी, अतएव आप इसे ग्रहण करें । इसके पुराय के प्रभाव से आप यहां पधारे हैं। आप दोनों का जैसा रूप है

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