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(८७) के समान छोड़ दिया और छोड़ते समय उनसे क्षमा मांगली। पश्चात् समस्त इष्ट जनों से क्षमा मांग कर समवसरण में प्रवेश किया । भगवान को नमस्कार करके बोला, हे जगतरक्षक, करुणासागर जिनेन्द्र भगवान, कृषा करके मुझे जिन दीक्षा दीजिए । यह कहकर कुमारने जो कुछ वस्त्राभरण पहिन रक्खे थे वे भी सब उतार दिए । पांच मुट्टियों से अपने सिर के केश उखाड़कर फेंक दिए और समस्त सावध योग के उत्पन्न करने वाले परिग्रह को छोड़कर बहुत से राजाओं के साथ दिगम्बरी दीक्षा लेली और संसार से अतिशय विरक्त होगए । ___ उसी समय भानुकुमार तथा सत्यभामा, रुक्मणी आदि रानियों ने भी जिनदीक्षा लेली।
* तीसवां परिच्छेद *
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ब कुमार व्रत धारण करके कठिन उत्कृष्ट तप करने
लगा। सम्यग्दर्शन, ज्ञान चारित्र संयुक्त होकर WHERE देव, गुरु, शास्त्र की त्रिविधा भक्ति करते हुए अनेक अद्धियां प्राप्त की। क्रोधादि कषायों को मंद किया, नाना प्रकार के संक्लेशों द्वारा शरीर कृश किया। बाह्य और
आभ्यंतर सर्व परिग्रह को छोड़ दिया। शरीर से ऐसी निर्म- . मत्व बुद्धि होगई कि उसकी ओर किंचित् भी लक्ष्य नहीं दिया।