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कनकमाला आलस्य से जंभाई लेती हुई उठबैठी और समस्त दास दासियों को दूर करके अंगड़ाती हुई बोली, हे मदन ! क्या तुम्हें मालूम है कि तुम्हारे माता पिता कौन हैं ? प्रद्युम्न, ने उत्तर दिया माता, आप ऐसा क्यों पूछती हैं । मेरी समझ में तो निश्चय आपही माता और महाराज कालसंबर मेरे पिता हैं । रानी ने कहा, ऐसा नहीं है । तुम्हारा अनुमान ग़लत है । हम तुम्हारे माता, पिता नहीं हैं। एक दिन हम दोनों बनक्रीड़ा करने के लिये तक्षक पर्वत पर गए थे । वहां हमने तुमको एक शिला के नीचे दबा हुआ देखकर निकाल लिया था और अपने हृदय में यह निश्चय करके कि तरुण होने पर मैं तुम्हें ही अपना पति बनाऊँगी, तुम्हें उठाकर घर ले आई थी, सो अब तुम तरुण होगए हो, अतएव मेरे साथ भोगों को भोगो, नहीं तो मैं विष खाकर मरजाऊँगी और स्त्रीहत्या का कलंक तुम्हारे माथे लगेगा |
माता के ऐसे वचन सुनकर प्रद्युम्न का माथा ठनक गया । हाय यह क्या हुआ । वह माता को बार २ समझाने लगा, पर उसपर कुछ असर न हुआ । लाचार थोड़ी देर में अवसर पाकर महल से निकल आया और इसी चिंता में घर छोड़ कर द्वादशांग के धारी अवधि ज्ञानी श्रीवरसागर मुनि महाराज पास गया । भक्ति पूर्वक बंदना करके निवेदन किया, महा
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