Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 61
________________ * इक्कीसवां परिच्छेदे * च लते २ उन्होंने एक जगह बड़ी भारी चतुरंगिणी सेना देखी, जिस में हज़ारों राजा और अग Vala णित घोड़े, रथ और पयादे थे। चक्रवर्ती की सेना के समान उस सेना को देख कर प्रघम्न कुमार ने बड़े आश्चर्य के साथ नारदजी से पूछा । हे नाथ ! यह किस का शिविर पड़ा हुआ है ? नारदजी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया हे वत्स, तुम इसी के लिये यहां लाए गए हो । जब तुम पैदा भी नहीं हुए थे तो हस्तिनापुर के कुरुवंशी राजा दुर्योधन ने अपनी गर्भस्थ पुत्री उदधिकुमारी को तुम्हारे लिए देनी कर दी थी, परंतु जब उत्पन्न होते ही तुम्हारा हरण हो गया और तुम्हारे जीते रहने की किम्वदंती भी यहां कहीं सुनाई नहीं पड़ी, तब उस रूपलावण्य की खानि सच्चरित्रा विद्यावती, विनयवती उदधिकुमारी को उसके पिता ने तुम्हारे छोटे भाई, सत्यभामा के पुत्र भानुकुमार को देने के लिए भेजी है और उसी के साथ में यह चतुरंगिणी सेना आई है। . कुमार को कुमारी के देखने की प्रबल इच्छा उत्पन्न झे गई । उसने तुरंत नारदजी से आज्ञा लेकर और एक भील

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