Book Title: Meerabai
Author(s): Shreekrushna Lal
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २० मीराँबाई सम्प्रदाय की बड़ी क्षति हो रही थी और पश्चिमी भारत -- राजस्थान और गुजरात में मीराँबाई के व्यक्तित्व के कारण इस सम्प्रदाय के उत्कर्ष में बाधा पड़ रही थी । इसीलिये इनको अपदस्थ करने के लिए जहाँ-तहाँ इनक उल्लेख किया गया है। परंतु इससे भी एक लाभ ही हुआ । साम्प्रदायिक संकीर्णता के कारण वार्ता में मीराँबाई की | महत्ता प्रकट करने वाले केवल लौकिक प्रसंग Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलौकिक और अद्भुत प्रसंगों का संकेत भी नहीं है, ही उसमें वर्णित हैं और यद्यपि इनमें मीरों का अपमान करने का ही प्रयत्न किया गया है, फिर भी सावधानी से उपयोग करने पर बहुत कुछ उपयोगी सामग्री मिल सकती है । 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' में मीराँबाई से सम्बंध रखने वाले निम्नलिखित श्रवतरण मिलते हैं : ( १ ) गोविन्द दुबे साचोरा ब्राह्मण तिनकी वार्ता और एक समें गोविन्द दुबे मीराँबाई के घर हुते तहाँ मीराँबाई सो भगवार्ता करत टके । तत्र श्री श्राचार्य जी ने सुनी जो गोविन्द दुबे मीराँबाई के घर उतरे हैं सो अटके हैं, तब श्री गुसाईं जी ने एक श्लोक लिखि पठायो सो एक ब्रजवासी के हाथ पठायौ तब वह ब्रजवासी चल्यो सो वहाँ जाय पहुँचे, ता समय गोविन्द दुबे सध्यावंदन करत हुते, तब ब्रजवासी ने ग्राय के वह पत्र दीनों सो पत्र बाँचि के गोविन्द दुबे तत्काल उठे, तब मीराँबाई ने बहुत समाधान कीयो, परि गोविन्द दुबे ने फिर पाछें देखौ | [ प्रसंग २ चौ० बै० की वा टाकोर सं० १९३० पृ० १२६-१२७ ( २ ) श्रथ मीराँबाई के पुरोहित रामदास तिनकी वार्ता सों एक दिन मीराँबाई के श्री ठाकुर जी के आगे रामदास जी कीर्तन करत हुते सो रामदास जी श्री श्राचार्य जी महाप्रभून के पद गावत हुते, तब मीराँबाई बोली जो दूसरौ पद श्री ठाकुर जी कौ गावो तब रामदास जी ने कह्यौ मीराँबाई सो जो रे दारी रांड यह कौन को पद है । यह कहा तेरे खसम कौ मूँड़ है जो जा ाज से तेरौ मुहड़ौ कबहूँ न देखूंगी । तब तहाँ ते सब कुटुम्ब को ले के रामदास जी उठि चले तब मीराँबाई नें बहुतेरो कह्यौ परि रामदास जी रहे नाहीं । पाछें फिरि के वाको मुख न देख्यौ । ऐसे अपने प्रभून साँ For Private And Personal Use Only

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