Book Title: Meerabai
Author(s): Shreekrushna Lal
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan

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Page 183
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपसंहार हिन्दी के श्रेष्ठ कवियों में मीराँबाई का स्थान बहुत ऊँचा है, परंतु हमारे कितने ही लब्धप्रतिष्ठ समालोचक मीरों को कवि मानने को तैयार नहीं, बे तो उन्हें केवल एक प्रसिद्ध भक्त मात्र स्वीकार करते हैं । 'मीरा की प्रेम साधना' नामक आलोचना ग्रंथ के रचयिता महोदय भी मीराँ को कवि नहीं मानते क्योंकि एक स्थान पर वे लिखते हैं " मीरा न कबीर की भाँति ज्ञानी ही थी, न जायसी की तरह कवि ही । वह एक मात्र प्रेम की पुजारिन थी ।" १ जो कबीर को ज्ञानी और जायसी को कवि समझते हैं उनके लिए तो मीराँबाई सचमुच ही न तो ज्ञानी है न कवि, क्योंकि उन्होंने न तो कबीर की भाँति अटपटी बानी' कहीं और न जायसी की भाँति असम्भव अतिशयोक्तियों की भरमार की । मीराँ ज्ञानी नहीं थीं, इसे मानने में किसी को विशेष प्रापत्ति नहीं होगी, परंतु कवि तो मीरों के समान हिन्दी में बहुत ही कम हुए हैं। यदि वाग्विदग्aता और उक्ति वैचित्र्य ही काव्य का मानदंड है तो जायसी अवश्य कवि हैं और मीराँ जायसी की तरह कवि नहीं; परन्तु कविता इससे कहीं महत् और ऊँची वस्तु है । जो कविता में कला की खोज करते हैं, जो अलंकारों और वक्रोक्तियों को ही कविता मानते हैं, उन्हें मीरों के पदों से निराशा ही होगी; परंतु जो कविता को कला से परे, अलंकारों के आडम्बर से प्रतीत, हृदय की स्वाभाविक और सरस अनुभूतियों को सरलतम और स्पष्टतम अभिव्यंजना के रूप में समझते हैं, उन्हें मीरों के पदों में उच्चतम कोटि की कविता के दर्शन होंगे। मीरों के पदों में जो अद्भुत और पूर्व कला उनकी कलाविहीनता है उसे हमारे विज्ञ समालोचकों ने अत्यंत तुच्छ समझ रक्खा है । कला की अभ्यस्त आँखों को कलाविहीनता का स्वाभाविक सौन्दर्य जैसे प्राकृष्ट नहीं कर पाता; उसी प्रकार काव्य-कला की परम्परा के १. मीरा की प्रेम साधना - प्रथम संस्करण पृ० सं० ८३ । For Private And Personal Use Only

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