Book Title: Meerabai
Author(s): Shreekrushna Lal
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan

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Page 186
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अालोचना खंड १७६ हिन्दी साहित्य के कवि-गायकों में मीरों का स्थान उच्चतम है । गीति. काव्य की रचना करने वालों में हिन्दी के तीन कवि-विद्यापति, सूर और मीरों -बहुत सफल हुए हैं। इनमें सूरदास में अद्भुत व्यापकता है तो मीराँबाई में अपूर्व गम्भीरता; विद्यापति के पदों में अनुपम माधुर्य भरा है तो मीरों के पद सहज स्पष्टता और स्वच्छंदता में अद्वितीय हैं । मीरों की रचनाएँ परिमाण में अधिक नहीं हैं, परंतु जो थोड़ी रचनाएँ प्राप्त हैं, गेयता और गम्भीरता, मरलता और स्पष्टता में वे अतुलनीय हैं। ___ मीराँ के 'स्फटिक तुल्य स्वच्छ हृदय पर भक्ति-युग की सभी विशुद्ध भावनात्रों का प्रतिविम्ब पड़ा था। कबीर और रैदास की निर्गुण ज्ञान भक्ति 'से लेकर चैतन्य और चंडीदास के राधा-भाय तक की सभी विशुद्ध भक्ति भावनाएँ मीराँ की कविता में एक साथ ही मिल जाती हैं। साथ ही कबीर का अटपटापन, तुलसीदास की साम्प्रदायिक संकीर्णता और जयदेव तथा विद्यापति की परम्परागत अश्लील व्यंजनाओं का उसमें लेश भी नहीं है । यह सत्य है कि मीरों में वह पांडित्य नहीं, वह विद्या-बुद्धि नहीं, वह साहित्यिक शैली नहीं, परम्परा से प्राप्त वह कला की भावना नहीं जो सूरदास, तुलसीदास और विद्यापति की कविताओं में मिलती है, परंतु जहाँ तक विशुद्ध कवि हृदय और नैसर्गिक प्रतिभा का प्रश्न है, वहाँ मीराँ इन कवियों से किसी प्रकार हलकी नहीं ठहरती । मीरों का साहित्यिक मूल्य सूर और तुलसी के समकक्ष कदापि नहीं है क्योंकि उन्होंने सूरसागर की भाँति अथाह और असीम रस सागर का निर्माण नहीं किया और न 'रामचरित मानस' की भाँति निष्कलुष पवित्र मानस की रचना की, परंतु गिरिशृंग से उतरने वाली निर्मल निरिणी के स्वच्छंद प्रवाह और कलकल शब्द में यदि कोई सौन्दर्य है तो मीरों के पदों में हमें वही सौन्दर्य मिलता है। समाप्त For Private And Personal Use Only

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