Book Title: Meerabai
Author(s): Shreekrushna Lal
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan

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Page 117
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीराँबाई सेवक-मेरी राजरानी ! अपने सेवक पर दया करो। 'राजरानी-सभा विसर्जित हो गई और मेरे सभी सेवक चले गये । तुम इतनी देर में क्यों आए ? सेवक-जब आप सभी से छुट्टी पा जाती हैं, तभी तो मेरी सेवा का समय होता है। मैं यह जानना चाहता कि आपके अंतिम सेवक के लिए, कौनसा कार्य बच गया है।। राजरानी--जब इतनी देर हो गई तब तुम किस कार्य की सम्भावना करते हो ? सेवक-मैं अपने अन्य कार्य छोड़ दूंगा । मैं अपना कृपाण और बर्थी धूल में फेंकता हूँ। मुझे दूर राजदरबारों में न भेजिये, मुझे किसी नवीन अभियान पर जाने की आज्ञा न दीजिये, वरन् मुझे अपने पुष्पोद्यान का माली बनाइये। राजरानी-उद्यान में तुम कौनसा कार्य करोगे? सेवक-अापके अवकाश समय की संवाएँ। आप प्रातःकाल जिस दूर्वादल के कोमल पथ पर पद-संचार करती हैं मैं उसे हरा-भरा रखंगा, जहाँ अापके कोमल श्री चरणों से दलित होने की कामना वाले पुष्प श्रापके चरणों का विनययुक्त स्वागत करेंगे। रवीन्द्र अपनी अधिष्ठात्री देवी के माली होना चाहते हैं और मीराँ अपने गिरधर नागर की मालिन । कला, संगीत और नाटकीय गुणों में रवीन्द्र का यह गीत अद्वितीय है परन्तु भावों की कोमलता और सहज मधुरता में मीरों के 2. Servant--Have mercy upon your servant, my queen ! Queen--The assembly is over and my servants are all gone. Why do you come at this late hour ? Servant----When you have finished with others, that is my time. I come to ask what remains for your last servant to do. Queen--What can you expect when it is too late ? Servant-I will give up my other work. I throw my swords and lances in the dust Do not send me to distant courts, do For Private And Personal Use Only

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