Book Title: Meerabai
Author(s): Shreekrushna Lal
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan

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Page 167
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीराँबाई सावन में उमँग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि श्रावन की । , उमड़-घुमड़ चहुँदिस श्रायो, दामण दमक मर लावन की ।। और एक दिन मिलन भी हो जाता है (सम्भवतः कल्पना में ), परंतु वह मिलन इतनी कठोर साधना के पश्चात् होता है कि उस संयोग से केवल शुद्ध अानंद की ही उपलब्धि होती है, शारीरिक वासना और लौकिक शृंगार भावना का उसमें लेश भी नहीं रह पाता । उस अलग प्रवास में रहने वाले के आने से मीराँ सुखी अवश्य है : म्हारा अोलगिया घर आया जी ॥टेक।। तन की ताप मिटी सुख पाया, हिलमिल मंगल गाया, जी। घन की धुनि सुनि मोर मगन भया, यूँ मेरे पाणद आया जी। मगन भई मिलि प्रभु अपणासू; भौ का दरद मिटाया, जी। चन्द . देखि कमोदणि फूल, हरखि भया मेरी काया, जी। रग रग सीतल भई मेरी सजनी, हरि मेरे महल सिधाया जी। [ मी० पदा० पद सं० १४९ ] परन्तु इस सुख में तनिक भी उन्माद नहीं, उत्ताप नहीं । इतना प्रशांत और पूर्ण श्रानंद बहुत बड़ी साधना के उपरांत ही मिलता है और मीरों की प्रेम साधना वास्तव में बहुत बड़ी है। ___ दूसरा कारण है, मीरों ने परम्परागत नायिका-भेद के लक्षण ग्रंथों की अवहेलना कर शुद्ध और सरल नारी हृदय से प्रेम की अभिव्यक्ति की है। यह मान और अभिसार अथवा उन्माद और प्रलाप वाला कृत्रिम प्रेम नहीं है, वरन् साधना और प्रात्म समर्पण की भावना से पूर्ण एक सरल नारी का सहज प्रेम है । अपने विरह-निवेदन में वे विरह की परम्परागत एकादश दशाओं का वर्णन नहीं करती वरन् अपनी सहज व्यथाका ही वर्णन करती हैं। रीतिकाल की विरहिणी नायिकाएँ जब प्रेम-पत्र लिखने का प्रयत्न करती है, तब विरह के शब्दों की आँच से ही कागज जलकर भस्म हो जाता है, स्याही सूख जाती है और कलम का डंक जल उठता है। इसी प्रकार सूरदास की गोपिकाएँ मी जब भगवान कृष्ण के पास पत्र भेजने का प्रयत्न करती हैं तो आसुत्रों की. For Private And Personal Use Only

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