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जीवनी खंड
सोरह से सोरह लगे, कामद गिरि ढिग वास। सुचि एकांत प्रदेस महँ, आये सूर सुदास ॥
xxxxxx ले पाति गये जब सूर कबी । उर में पधराय के स्याम छबी
तब श्रायो मेवाड़ ते, विप्र नाम सुखपाल । मीराबाई पत्रिका, लायो प्रेम प्रबाल || पढ़ि पाती, उत्तर लिखे, गीत कवित्त बनाय ।
सब तजि हरि भजिबो भलो, कहि हिय विप्र पठाय ।। अर्थात् मीराँबाई का पत्र लेकर सुखपाल नामक ब्राह्मण सं० १६१६ में मेवाड़ से अाया। पीछे मीरींबाई ने पत्र में क्या लिखा और गुसाई तुलसीदास ने उसके उत्तर में क्या लिख भेजार यह भी निश्चित रूप से पता लगा लिया
१ मीराबाई का पत्र इस प्रकार का कहा जाता है :
श्री तुलसी सुखनिधान, दुख हरन गुमाई । बारहिं बार प्रणाम करू, अब हगे सोक समुदाई ।। घर के स्वजन हमारे जेते, सबन उपाधि बढ़ाई। माधु-संग अरु भजन करन, मोहि देत कलेस महाई ।। बालपने. ते मोरा कीन्हीं गिरधर लाल मिताई। मो तो अब छूटत नहिं क्यों हूँ, लगी लगन बरियाई ।। मेरे मात पिता के सम हो, हरि भक्तन सुखदाई।
हमको कहा उचित करिको है, सो लिखियो समुझाई ।। ६ मीरा के पत्र के उत्तर में गुसाई तुलसीदास ने निम्नलिखित पद लिखा था
जाके प्रिय न राम वैदेही। सजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही। तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषण बन्धु, भरत महतारी। बलि गुरु तज्यो, कन्त ब्रज बनिता, भये सब मङ्गलकारी ।। नातो नेह राम सो मनियत, सुहृद मुसेव्य जहां लौं। श्रअन कहा आंख जो फूट, बहुक कहीं कहां लो॥ तुलसी सों सब भांति परम हिन, पूज्य प्रान ते प्यारो। जासों बढ़े सनेह राम पद, एतो मतो हमारो।।
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