Book Title: Meerabai
Author(s): Shreekrushna Lal
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan

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Page 173
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माराबाई सोलहवीं शताब्दी में संगीत का पुनरुत्थान हुआ था । जौनपुर के इब्राहीम शाह शर्की तथा उसके पौत्र हुसेनशाह शर्की के दरबार में भारतीय संगीत की विशेष उन्नति हुई थी। इसी शी सल्तनत में कड़ा मानिकपूर के शासक मलिक सुलतान शाह के पुत्र मलिक बहादुरशाह ने एक वृहत् संगीत सम्मेलन का आयोजन कर 'संगीत-शिरोमणि' नामक ग्रन्थ ( रचना काल १४२८) प्रस्तुत कराया था। इसी समय मेवाड़ के स्वनामधन्य महाराणा कुम्भा भी बड़ा संगीत प्रेमी, गायक और वीणा-वादन में निपुण प्रसिद्ध हुआ है। उसने संगीत-शास्त्र पर 'संगीत राज' नामक ग्रन्थ की रचना की, साथ ही साथ संगीत रचना भी 'संगीत-रत्नाकर' तथा 'गीतगोविन्द' की टीका के रूप में उपस्थित की। लगभग उसी समय निधुबन के स्वामी हरिदास, जो प्रसिद्ध गायक तानसेन के संगीत-गुरु प्रसिद्ध है, तथा बैजू बावरे भी भारतीय संगीत की धारा बहा रहे थे। मुग़ल सम्राट अकबर भी भारतीय संगीत का प्रेमी था और उसके दरबार में तानसेन, रामदास और उसके पुत्र सूरदास जैसे प्रसिद्ध गायक रहते थे। बल्लभाचार्य के शिष्यों में कितने ही प्रसिद्ध गायक थे । संगीत के उस पुनरुत्थान काल में हिन्दी साहित्य में भी संगीत-प्रधान गीति-काव्य शैली का खूब प्रचार हुश्रा । हृदय के धर्म भक्ति की अनुभूतियों और भावनाओं की सरस धारा प्रवाहित करने के लिए यह काव्य-रूप अत्यन्त उपयोगी भी प्रमारिणत हुअा। फलतः उस काल में, जिसे साहित्य में भक्तिकाल की संज्ञा दी गई है, हिन्दी कविता में गीति-काव्य-शैली का बोलबाला था। गीति-काव्य संगीत-प्रधान तो होता ही है, उसकी सबसे बड़ी विशेषता उसकी अंतर्मुखी प्रवृत्ति है । साधारण गीति-काव्यों में यह अंतर्मुखी वृत्ति कवि के व्यक्तिगत अथवा उसके नायक और नायिका के सुख और दुःख, आशा और निराशा, भय और पीड़ा, क्रोध और वृणा इत्यादि की सहज और संगीतमय अभिव्यक्ति करती है। परंतु कुछ गीत ऐसे भी होते हैं जहाँ कधि की अंतर्मुखी वृत्ति उसकी व्यक्तिगत अथवा काल्पनिक नायक-नायिका की लौकिक भावनाओं और अनुभूतियों का अतिक्रमण कर अलौकिक के क्षेत्र में जा पहुँचती है: हाँ. लौकिक और साधारण सुख दुःश्व के स्थान पर अलौकिक और असाधारण For Private And Personal Use Only

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