Book Title: Jain Vrat Katha Sangraha
Author(s): Lala Jainilal Jain
Publisher: Lala Jainilal Jain Saharanpur

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Page 5
________________ - - VROLET 4Iyers AAMR. sk R ecket Ama ऋषिपंचमीब्रतकथा भाषा॥ एकदिवसबन्द जिनदेवा । स्तनागपुर दोहा-बन्दों श्रीजिनराजके, चरणकमल गुणहीर।। भवसमुद्रतारणतरण, हरणसकल भवपीर ॥१॥ चन्दौजिन वाणीसुभग, जाते दुरित नशाय । कथा पंचमीकी कहूं, गुरु के लागों पोय ॥२॥ ॥ चौपाई॥ राज गृह नगरी शुभ वसै। शोणिक महाराज अतिलसै ॥ एकदिवसबन्दजिनराजा। श्रोणिकप्रभाकियासुखकाजा ॥३॥ व्रतपंचमीकहो जिनदेवा। किनपायो फलकर व्रत सेवा ॥ तवगणधर बोलेसुनसंता । हस्तनागपुर बसे महंता ॥४॥ धनपतिनगरसेठतहंबसै। कमल श्री वनिता गृह लसै ॥ पुत्र सुभविकदत्ततिसगेह । भयो पुनीतमदनसमदेह ॥५॥ धनपतिऔर विवाहीत्रिया। नामरूप श्रीपति अतिप्रिया ॥ तबकमलनीअतिदुखसहै । पुत्रसहितन्यारेगृहरहै ॥६॥ धनपति रूप स्त्री आनन्द । वन्धुदत्त सुत उपजो चंद ॥ ज्यों ज्यों वड़ेसयानेभये । त्योत्योसकलकलागुणलये ॥७॥ एकदिवसमिलदोनोंभ्रात । धन बिढ़वनकीकहियोबात ।। तात गात आनंदित भयो । रत्नदीपको आयसुदयो ॥८॥ संगलये योद्धा वह धीर । लये पाट अम्बर वर चोर ॥ वणिजयोग्यलीनेसबसाज । रत्नाभूषणवर गजबाज ॥६॥ -

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