Book Title: Jain Vrat Katha Sangraha
Author(s): Lala Jainilal Jain
Publisher: Lala Jainilal Jain Saharanpur

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Page 34
________________ ( ३० ) नदीश्वाव्रतकथा ॥ वन्दे गुरुजी धुरंधर देव । मन वच काय करी बहुसेव ॥ तब मुनिपंच अनुवत दिये । दोनों भावसहितव्रतलिये ||२५|| अरुनंदीश्वरव्रततिनलियो । अंतसमाधिमरणतिनकियो || हस्त नागपुरशु भजहांबसे । तहांविमलवाहननृपलसे ॥२६॥ ताके नारि श्रीधरा नाम । आरिंजय अमितंजय धाम ॥ पुत्रयगलहम उपजेतहां । पूर्वपुण्यभलपायो जहां ॥ २७ ॥ गुरुसमीप जिन दिक्षालई । तपबल चारण पदवी भई ॥ यासे हम तुम पूर्व भ्रात । देखतप्रेम ऊपजो गात ॥ २८ ॥ पूर्व व्रत नंदीश्वर कियो । ताते राज चक्र पद लिया ॥ अब फिरवत नंदीश्वरकरो । तातेस्वर्गमुक्तिपदधरो ॥ २६ ॥ तब हरिसेन कहे कर जोर । व्रत नंदीश्वर कहो बहोर ॥ मुनिवरकहें द्वीप आठमी । तासनामनंदीश्वरनमो ॥ ३० ॥ ताकेचहुंदिशि पर्वत परे । अंजन दधिमुखं रतिकरधरे ॥ तेरह तेरहदिशिदिशजान | येसबपर्वतबावनमान ॥ ३१ ॥ पर्वतपर्वत पर जिन ग्रह । वह परिमाण सुनो कर नेह ॥ सौयोजनताका आयाम | अरुपत्रासविस्तारसुताम ॥ ३२ ॥ उन्नति है योजन पच्चीस । सुर तहं आय नत्रा में शीश ॥ अष्टोत्तरसौ प्रतिमाजान । एक २ चैत्यालयमान ॥ ३३ ॥ गोपुर मणिमय के सुप्रकार | छत्र चमर ध्वजवंदनवार ॥ प्रातिहार्यविधिशोभाभली । तिनरवि कोटिसोमछविछली ॥ तास द्वीप में सुरपति आय । पूजा भक्ति करे बहु भाय ॥ देव अतीवृत नहीं करें। भावभक्ति करपातिक करें ॥३५॥ तासद्वीप सम्बन्धी सार । व्रत नंदीश्वरको अधिकार ॥ यहां कहो जिनवरसुंप्रकाशि। आदिअनादिपुण्यकीराशि ॥ जो वृत भव्य भाव से करें । भव २ जन्म जराभय हरें ॥ - ताव्रतको सुनिये अधिकार । वर्ष २ में त्रय २ बार ॥ ३७ ॥

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