Book Title: Jain Vrat Katha Sangraha
Author(s): Lala Jainilal Jain
Publisher: Lala Jainilal Jain Saharanpur
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(१२)
अनंत चौदाव्रतकथा । याकीवातकहोसमझाय । ज्ञानवंत मुनिवरतुमआय ॥ ११ ॥ गौतम बोले वुद्धि अपार । विजया नगर कहो अतिसार ॥ मनो कंभ राजा राजत । श्रीमती रानीको कंत । १२॥ ताका पुत्र अरिंजय नाम । पुण्यवंत सुंदर गुणधाम ।। पूर्वतप कीनो इनजोय । ताका फलभगतेशुभसोय ॥ १३ ॥ ताको कथा कहूं विस्तार । जंबू द्वीप द्वीपों में सार ॥ भरतक्षेत्र तामें सुखकार । कोशलदेश विराजे सार ॥ १४ ॥ परम सुखदनगरीतहंजान । विम सोमशा गुणखान ॥ सोमिल्या भामिनताकही। दुखदरिद्रकोपूरितमही ॥१५॥ पूर्व पाप क्रिये अतिघने । ताको दुःख भुगतही बने । । सनराजा याका वृतांत । नगर २ सो श्रमें दःखान्त ॥ १६ ॥ देश विदेश फिरे सुखआश । तोहु न पावे सुक्खनिवास ॥ भ्रमतर लो आयोतहां । समो शरणजिनवरको जहां ॥१७॥ दो-अनंतनाथजनराजका, समोशरणातहिबार ॥ सुरनर अति हर्पितमये, देखमहाद्युतिसार ॥ १८ ॥
॥चौपाई ॥ विप्र देख अलिहर्षित भयो । समोशरण वन्दन को गयो । वन्दिजिलेश्वर पूछे सोइ । कहापाप मैं कीना होइ ॥ १६ ॥ दरिद्र पीड़ा दहे शरीर । सोतो व्याधि हरो गंभीर ॥ गणधरकहेंसुनोद्विजराय । अनन्तव्रत कीजेसुखदाय ॥२०॥ तब विन बोलो कर भाय । किस विधिहोइ सोदेहुबताय ॥ किसप्रकारयावतकोकरों । कहाविधान चित्तधरों ॥२१॥ भादोंमोस सुखकीखान । चौदशशुक्ल कही सुखदान । . करस्नान शुद्ध होजाय । तब पूजेजिनवरसुखदाय ॥ २२ ॥ गुरुवन्दना करे चितलाय । या विधिसे व्रतलेय बनाय ॥
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