Book Title: Jain Vrat Katha Sangraha
Author(s): Lala Jainilal Jain
Publisher: Lala Jainilal Jain Saharanpur

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ - - मुक्तावलीव्रतकथा ॥ (२९) तब श्रोगुरयोले हर्षाय । मुक्तावलीकरो मनलाय ॥ १४ ॥ तासे सर्वपाप जरजाय । सुखसम्पत्ति मिलेअधिकाय ॥ तबदुर्गंधाकहे विचार । कौनभांतिकीजे व्रतसार ॥ १५ ॥ तबमुनिवरइमवचनकहाइ । सुनोभेद व्रतका चितलाइ॥ भादोंसुदिसप्तमिदिनहोइ । तादिनव्रतकीजेभक्लिोइ ॥ १६ ॥ प्रातसमय जिनमंदिरजाइ । पूजा कथासुनो मनलाइ ॥ सबआरंभतजोदिनमान । संयमशीलसजोगुणखान ॥१९॥ भोर भये जिन दर्शनकरो। शुद्ध अशनकीजेतबखरो॥ द्रजोवतपूर्ववतकरो। अश्विनयदिछठिपापनिहरो॥१८॥ तीजोबत कोजे उरधार । अश्विनबदितेरसि सुखकार ॥ करउपवासपालोगुणरसी । चौथोअश्विनसुदिग्यारसी ॥१८॥ पंचमत्त कीजे मनलाइ । कार्तिकबदियारसि सुखदाय ॥ फिरछठवांउपवाससुजान। कार्तिकशुनतीजगुणखान ॥२०॥ सप्तमवृत्तजिनधरनेकहो । कार्तिकसुदिग्यारसिशुभलहो । फेरकरोअष्टमवृतलोइ । मार्गबदिग्यारसिजवहोइ ॥ २१ ॥ नवमोवृत मार्ग सुदितीज । ये व्रत धर्म वृक्षके बीज ॥ याविधिकरोनववर्षप्रमान । मनवचकायशुद्धताठान ॥ २२ ॥ जय त पूर्ण होइ निदान । उद्यापन कीजे गुणवान ॥ श्रीजिनवरअभिषेककराइ । करोमाइनोजिनगृहजाइ ॥२३॥ अष्ट प्रकारी पूजा करो। जन्म २ के पातक हरो॥ यथाशक्तिउपकरणबनाय । श्रीजिनधामचढ़ावोजाय ॥२४॥ उद्यापनको शक्ति न होय । तो दूनो वत कीजे लोय ॥ सबविधिसुनदुर्गंधाबाल । मनवचतनव्रतलीनोहाल ॥ २५ गुरुभाषित तिनविधि सेकियो । पूर्वभवअघ पानीदियो । ताफलनारिलिंगछेदियो । सौधर्मस्वर्गदेवसोभयो ॥ २६ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39