Book Title: Jain Vrat Katha Sangraha
Author(s): Lala Jainilal Jain
Publisher: Lala Jainilal Jain Saharanpur

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Page 21
________________ दशलवामनतकथा ॥ (१७) श्री जिनपूजे मनधर चाय । स्तुतिकरी जोड़कर भाव ।। धर्मकथातहासुनीविचार । दान शील तप भेदअपार ॥३॥ भवदुःख क्षायक दायक शर्म । भाषो प्रभु दशलक्षणधर्म ॥ ताकोसुनश्रेणिकरुचिधरी । गुरुगौतमसेविनतीकरी ॥४॥ दश लक्षण व्रत कथाविशाल । मुझसे भाषो दीन दयाल । बोलेगुरुसुनश्रेणिकचंद्र । दिव्यध्वनिकहोबीरजिनेंद्र ॥५॥ खंड धातुकी पूर्व भाग । मेरु थकी दक्षिण अनुरागं सोतोदाउपकंठी सही। नगरी विशालाक्षशुभकही ॥ ६ ॥ नामप्रीतंकर भूपति बसे। प्रीयकरी रानी तसु लसे ॥ मृगांकरेखासुतासुजान । मति शेखरनामासोप्रधान ॥७॥ शशिप्रभा ताको वरनारि । सुता काम सेना निरधार ॥ राजसेठ गुणसागरजान । शीलसुभद्रा नारिबखान ॥८॥ सुतामदन रेखातसु खरी । रूपकला लक्षण गुणभरी ॥ लक्षणभद्रनामा कुतवाल । शशिरेखानारीगुणमाल ॥ ६ ॥ कन्या तास घरे रोहिनी । ये चारों वरणी गरु तनी॥ शाखपढ़ेगुरुपासविचार । स्नेह परस्पर बढ़ा अपार ॥१॥ मास वसंत भयो निरधार । कन्या चारो वनहि मंझार ॥ गईमुनीश्वरदेखतहां । तिन कोबंदनकोनोवहां ॥ ११ ॥ चारों कन्या मुनि से कही । त्रिया लिंग ज्यों छूटे सही ॥ ऐसावतउपदेशो अवै । यासे नर तनु पावे सबै ॥ १२ ॥ घोलेमुनि दश लक्षण सार । चारों करो होहु भवपार ॥ कन्यायोलीकिम्कीजिये। किस दिनसेनतकोलीजिये ॥१३॥ तयगुरुयोले वचनरसाल । भादोमास कहो गुणमाल ॥ धवलपंचमीदिनसेसार । पंचामतअभिषेकउतार ॥ १४ ॥ पूजार्चनकीजे गुणमाल । जिन चौवीस तनी शुभसाल ।। -nandan

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