Book Title: Jain Vrat Katha Sangraha
Author(s): Lala Jainilal Jain
Publisher: Lala Jainilal Jain Saharanpur
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Ramadandre
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सुगन्धदशमीव्रतकथा ॥ करप्रणाम वच उपसेकहो । चित्त प्रमोदसेठाडोरहो ॥३॥ वर्द्धमानआयेजिनस्वामि । जिनजीतोउद्यतअरिकाम ॥ इतनीसुनतनपतिउठचलो । पुरजनयुतदलबलसेभलो ॥४॥ समोशरण बन्दे भगवान । पूजा भक्ति धार बहुमान । नरकोठाबैठोनप जाय । हाथ जोड़पछे शिरनाय ॥५॥ सुगंधदशमी व्रतफलभाषि। ता नरकी कहिये अवसाखि ॥ गणधर कहेसुनोमग्धेश । जंबूद्वीपविजयाई देश ॥६॥ शिवमंदिर पुर उत्तर श्रेणी । विद्याधर प्रीतंकर जैनी ॥ कमलावती नारिअतिरूप । सुर कन्या से अधिक अनूप । सागरदत्त बसे तहों साह । जाके जिनप्रतमें उत्साह ॥ धनदत्तावनिता गृहकही । मनोरमा ता पुत्री सही ॥८॥ सुगुप्ताचार्य गृह आइयो । देख मुनींद्र दुःख पाइयो । कन्यामुनिकी निंदाकरी । कुछ मनमेंनहिंशंकाधरो ॥६॥ नग्न गात दगंध शरीर । पगट पने देही नहिं चोर ॥ मुखतांबूलहतामुनिअंग । मानो सुखकोकीनोभंग ॥१०॥ भोजन अंतरायजबभयो । मुनि उठजायध्यानबनदयो । समताभाव धरेउरमांहिं । किंचित खेदचित्तमें नाहिं ॥ १९ ॥ वीतअवधिसमयकछुगयो । मनोरमा काकालसुभयो । भईगधीपुनिकुकरीग्राम । अपर ग्रामभईसूकरीनाम ॥१२॥ मगधसुदेशतिलकपुरजान। विजय सेनतहकानपमान ॥ चित्ररेखा ता रानी कही। ता पुत्रीदुर्गंधाभई ॥१३॥ एक समय गुरुवंदन गयो । पूजाकर बिनती को ठयो। मो पुत्रोदुर्गंधशरीर । कही भवान्तर गुण गंभीर ॥ १४ ॥ राजा बचन मुनीश्वर सुने । मुनि वृतान्त रायसे भने । सबवृतांतहाजिलोजान । मुनिराजासेकहोबखान ॥१५॥ सुनदुर्गंधा जोड़े हाथ । मो पर कृपा करो मुनिनाथ ॥

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