Book Title: Jain Sampradaya Shiksha Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 9
________________ जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ ६ यदि त् से परे ग, घ, द, ध, बु, भ, सत्+भक्ति-सद्मक्ति । जगत् ईश-जगय, र, वू, अथवा स्वर वर्ण रहे तो त् के दीश । सत्+आचार-सदाचार । सत्+ध स्थान में न हो जाता है । म सद्धर्म, इत्यादि । ७ यदि अनुखार से परे अन्तस्थ वा ऊष्म सं+हार-संहार । सं+यम संयम । सं+ वर्ण रहे तो कुछ भी विकार नहीं होता॥ रक्षण-संरक्षण । सं+वत्सर-संवत्सर । ८ यदि अनुखार से परे किसी वर्ग का कोई संभाति-सङ्गति । अपरं+पार अपरम्पार । वर्ण रहे तो उस अनुखार के स्थान में अहं+कार अहङ्कार । सं+चार सञ्चार । उसी वर्ग का पांचवां वर्ण हो जाता है। सं+बोधन-सम्बोधन, इत्यादि ॥ ९ यदि अनुखार से परे खर वर्ण रहे तो सं+आचार-समाचार । सं+उदाय समुमकार हो जाता है । दाय । सं+ऋद्धि-समृद्धि, इत्यादि । विसर्गसन्धि ॥ इस सन्धि के भी बहुत से नियम हैं उनमें से कुछ दिखाते हैं:नम्बर ॥ नियम ॥ विसर्गद्वारा शब्दों का मेल ॥ १ यदि विसर्ग से परे प्रत्येक वर्ग का ती- मनः+गत मनोगत । पयः+घर पयोधर । सरा, चौथा, पांचवां अक्षर, अथवा यू, मनः+हर मनोहर । अह+भाग्य अहो र, ल, व, ह, हो तो ओ हो जाता है। भाग्य । अघः मुखअधोमुख, इत्यादि । २ यदि इकार उकार पूर्वक विसर्ग से परे निः+कारण=निष्कारण । निः+चल-नि कु, ख्, , , प, फ, रहे तो मूर्धन्य श्चल । निः+तार-निस्तार । निः+फल प्, च, छ रहे तो तालव्य श् और त्, निष्फल । निः+छल-निश्छल । नि+पाप थ, रहे तो दन्त्य स् हो जाता है। निष्पाप । निः+ट-निष्टङ्क, इत्यादि ॥ ३ यदि इकार उकार पूर्वक विसर्ग से परे निः+विन=निर्विघ्न । निः+बल=निर्बल प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवां निः+मल-निर्मल निः+जल=निर्जल।निः+ अक्षर वा स्वर वर्ण रहे तो र होता है। धन-निर्धन, इत्यादि ॥ १ यदि इकार उकार पूर्वक विसर्ग से परे निः+रस-नीरस । निः+रोग-नीरोग। निः+ रेफ हो तो विसर्गका लोप होकर पूर्व रागनीराग । गुरु रम्या गुरूरम्या, स्वर को दीर्घ हो जाता है ॥ इत्यादि ॥ यह प्रथम अध्यायका वर्णविचार नामक तीसरा प्रकरण समाप्त हुआ ॥Page Navigation
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