Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

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Page 86
________________ सम्यक् धर्म ७५ अभ्यास द्वारा हम अपने चित्त को किसी सत्य आलंबन के सहारे देर तक सजग, समाहित रख सकने में सचमुच सफल होते हैं । हमारे संकल्प सम्यक् हों। संकल्प तब सम्यक् होते हैं जबकि हम अपनी चित्तधारा पर से हिंसा, क्रोध, द्वेष, दौर्मनस्य की दुर्वृत्तियां वास्तव में दूर कर देते हैं। हमारा दर्शन सम्यक् हो । दर्शन तब सम्यक् होता है जबकि हम बुद्धिकिलोल से छुटकारा पाकर परम सत्य का यथार्थतः दर्शन कर लेते हैं । दर्शन माने फिलास्फी नहीं समझें। अन्यथा किसी मत-मतान्तर की फिलास्फी के सिद्धान्तों का चिंतन-मनन ही हमारे लिए सम्यक् दर्शन बन बैठेगा और इस प्रकार मिथ्या दर्शन में उलझे रह जायेंगे। दर्शन माने साक्षात्कार । परन्तु साक्षात्कार का भी अर्थ यह नहीं कि बार-बार के निदिध्यास द्वारा यथार्थ से सर्वथा दूर किसी कल्पना प्रसूत रंग-रोशनी रूप-आकृति को बन्द आंखों से देख कर इस मिथ्यादर्शन को ही सम्यक् दर्शन मानने लगें। दर्शन माने सत्य की स्वानुभूति । अपने ही भीतर स्थूल सत्य से आरम्भ करके सूक्ष्म से सूक्ष्मतर सत्यों की स्वानुभूति करते हुए जब परम सत्य की स्वानुभूति होती है तो ही दर्शन सम्यक् होता है। सम्यक् दर्शन के इस अनुभूति जन्य धरातल पर जो ज्ञान होता है वही ज्ञान सम्यक् है । अन्यथा बुद्धि किलोल जन्य मिथ्या ज्ञान है । सम्यक्दर्शन और सम्यक्ज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों की उपलब्धि साथ-साथ होती है। सम्यक् दर्शन हो जाय तो सम्यक्ज्ञान, सम्यक्बोध हो ही जाता है जो कि अभ्यास जन्य धर्म का चरमोत्कर्ष है । सतत् अभ्यास करते-करते सर्वांगीण धर्म को जब हम सम्यक् बनाते हैं, परम परिशुद्ध करते हैं, तो जीवन-व्यवहार में स्वभावतः सर्वतोमुखी उन्नति होती है। कायिक, वाचिक और मानसिक कर्मों में से अशुद्धियां दूर होती हैं । जीवन कृतकृत्य होता है, धन्य होता है। त्रिविध आचरण स्वतः सुधरते जाते हैं । चारित्र्य सम्यक् होता जाता है। यदि ऐसा न हो और केवल किसी सम्प्रदाय विशेष की रूढ़ि परम्पराओं का पालन करते हुए अपने आपको सम्यक् चारित्र्यवान् कहें तो धोखे में पड़ते हैं। चित्त विकारों से मुक्त हो नहीं, व्यवहार में सौम्यता आए नहीं, पारस्परिक बर्ताव में शुद्धि आए नहीं, फिर भी सम्यक् चारित्र्य कहें तो मिथ्या को ही सम्यक् मान लेने की भ्रांति होगी।

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