Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

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Page 97
________________ धर्म : जीवन जीने की कला अधिक आवश्यक है । इन पर बेड़ियाँ लगी हों तो समझो हम सत्य और धर्म से दूर भटक रहे हैं। अनुमान और प्रत्यक्ष सत्य का गठबंधन बड़ा कल्याणकारी होता है। जो अनुभव करें उसे बौद्धिक स्तर पर समझें और जिसे बौद्धिक स्तर पर समझें उसे अनुभूतियों के स्तर पर जानें, यही सत्य-शोध है। इस सत्यशोध में शब्दसत्य भूमिका और मार्ग-निर्देशन का कार्य करता है, बशर्ते कि हम उसका उपयोग खुले दिमाग से करें। लेकिन जब सत्य का शोधक किसी पूर्व मान्यता का पक्षधर हो जाता है तो सत्य का अनुसंधान छूट जाता है। फिर तो जीवन भर येन-केन-प्रकारेण अपनी मान्यता को सत्य सिद्ध करने में ही सारा परिश्रम लगा देता है। किसी महापुरुष की अनुभूति-सिद्ध वाणी हो, उस पर हमारी बुद्धि की कसौटी की परख हो और उसके आधार पर हमारा प्रत्यक्षानुभूति का अभ्यास हो तो सत्यधर्म का रथ ठीक दिशा में आगे बढ़ता है और गंतव्य तक पहुंचाता है। सत्य के इन तीनों महत्त्वपूर्ण अंगों का ठीक-ठीक उपयोग करते हुए हम असत्य से सत्य की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, बंधन से मुक्ति की ओर, बढ़ते चलें । इसी में हम सबका कल्याण, मंगल, भला समाया हुआ है।

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