Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

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Page 91
________________ धर्म : जीवन जीने की कला आयामों को देखने-समझने वाले लोगों को चौथे आयाम की जानकारी किन शब्दों में कराई जाय ? इन्द्रियातीत अवस्था की अनुभूति इन्द्रियों के माध्यम से कैसे समझाई जाय ? समझाने की कोशिश करें तो कोई समझे भी कैसे ? अतः हर समझदार आदमी के लिए इन अनुभवों की चर्चा करते हुए नकारने के सिवाय कोई चारा नहीं रहता। ऐसा परम सत्य कभी शब्द-सत्य बन ही नहीं सकता। ___ इन्द्रियातीत अनुभूति के लिए तो शब्द असमर्थ हैं ही, परन्तु ऐन्द्रिय अनुभूतियों को भी शब्दों में ठीक-ठीक नहीं ढाला जा सकता । सूक्ष्मतर आन्तरिक अनुभूतियाँ अधिकतर गूगे का गुड़ ही बनी रह जाती हैं । व्यक्त करने के सभी प्रयत्न अधूरे रहते हैं। भाषा की सीमाओं के अतिरिक्त बोलने व लिखने वाले की और उससे भी अधिक सुनने व पढ़ने वाले की अपनी-अपनी सीमाएँ हैं जो कि शब्द-सत्य के पूर्ण सत्य बनने में बाधक होती हैं। कहने वाला जो कहना चाहता है उसे ठीक-ठीक कह न सके और जो कहे वह जिस अर्थ में कहा गया है, सुनने वाला उस अर्थ में समझ न सके, यही शब्द सत्य की अपूर्णता है। परन्तु फिर भी अनुभूतिजन्य सत्य को शब्दों में उतारने के प्रयत्न होते ही हैं । कुछ अंशों में उनका लाभ हुआ है और कुछ अंशों में हानि भी । जहाँ उन्हें खुले दिमाग से अपनाया गया, वहाँ लाभ हुआ। परन्तु जहाँ उन्हें पूर्ण सत्य मानने की हठधर्मी हुई वहाँ साम्प्रदायिक अंधविश्वास और अंध-मान्यताओं को बढ़ावा मिला । लोगों के दिमाग पर ताले लगे । सत्य अनुसंधान के क्षेत्र में मानव की प्रगति स्की। परन्तु आखिर मानव तो मनु पुत्र है न ? मन से उपजा है। मनन-चिंतन करके ही किसी सत्य को स्वीकारना उसका जन्मजात सहज स्वभाव है। साम्प्रदायिक नेताओं द्वारा उसके चिंतन-मनन की प्रतिभा को कुंठित कर उसे जड़ भरत बनाए रखने के हजार प्रयत्नों के बावजूद भी मानव समाज का एक प्रबुद्ध वर्ग शब्द सत्य को जाँचने-परखने, बुद्धि के तराजू पर तोलने, तर्क की कसौटी पर कसने और, युक्तियों के हथौड़ों की चोट लगाने का काम करता ही रहा है। इसी से सत्य का एक दूसरा स्वरूप उजागर हुआ जिसे अनुमान सत्य या बौद्धिक सत्य कहा गया। हर सच्चाई को बुद्धि की भट्ठी में तपाया जाना चाहिए । उसकी जाँच में दिमाग लगाया जाना चाहिए । युक्तियुक्त और

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