Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society

View full book text
Previous | Next

Page 279
________________ नेमिनाथना विशेषण तरीके मूकवामां आव्युं छे. आ विशेषण जिनसेन ह. पु. मां घणे स्थळे चक्रवर्ती राजा अथवा प्रभावशाली व्यक्तिने माटे वापरे छे. ३०६ महुमहाणिसंतु-संस्कृतछाया प्रमाणे विष्णुथी असेव्यमान. ... ३०६-३०७. १९ मात्रानी पत्ता छे. ... ... ... ... .. . .३०९ ते अने दुद्धरु मात्रामेळ खातर त्याज्य छे. . . ३११ आसण्ण ने बदले ओसण्ण-अवसन्न पूरो को छे ए. अर्थमां. हाथप्रतमां तो आ छे; परन्तु संभव छे के उपरनी मात्रा रही गई होय. ३१२. पंक्ति ३११मां दुर्नयनो पण त्याग को छे एवा भव्यजनो' एम आव्यु; ज्यारे आ पंक्तिनो 'दुर्नयथी आवतां व्यसनादिथी पण जे विरक्त थया छे' एम अर्थ छे. एटळे पुनरुक्तिदोष नथी. ३१५ पंचपयई ने बदले पंचवयई-पंचनतानि. एम. वाचो. ..... ३३७ अट्टरउद्द जुओ तत्त्वार्थ० ९. २९. आर्त अने रौद्र ध्यान खराब वस्तुना अध्यवसायथी करायला ध्यानना प्रकार छे अने संसारहेतुक छे; ज्यारे धर्म अने शुक्ल ध्यान शुभहेतुक छे भने मोक्ष अपावे छे. ३१९-३२० २७ मात्रानी घत्ता छे. स्वयंभूनी नाममुद्रा छे. ३१९ विहणंतउ-विहन्यमानः । ३१० स्थिरभावथी हर्ष अने आकुलरसथी विषाद, ए प्रमाणे जनो पाम्या. ...॥ पञ्चममुद्धरणम् ॥..... १. कवि अने तेनुं जीवनः कविना जीवननी घणी माहिती छूटा छूटा लेखोमां अने कविनी प्रसिद्ध थएल कृतिओनां पुरोवचनमां विस्तारथी आपेली मळी रहे छे. कविना जीवन अने समयनी चर्चा माटे आ लखाणो वांचवां:-(१) C. P. & Berar Mss. Catalogue Ed. Hiralal-Jntroduction and Extracts from Puspadanta's works in the Appendix, ( २ ) जैन साहित्य संशोधक. ग्रंथ. २. पा. ५७-८०, १४६-१५६. (३) Jasaharachariu of Puspadanta Ed. Dr. P. L. Vaidya, Karanja Series, Karanja, Berar, (४) Nayakumarachariu of Puspadanta Ed. Prof. Hiralal Jain Devendrakirti Series,

Loading...

Page Navigation
1 ... 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386