Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society

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Page 338
________________ गीत ४ नो अर्थ :-रात्रिना पाछला . यामे कोइक गुर्जरपथिके बळदनी खंचवानी मुश्केली संबंधी गायु :-धवल ( बळद ) जेम ज सगो असहाय (बळदपक्षे-धुरा धारण न करी शके तेवानो ) जननो भार न खेंचे, तो ते कोढ अने आंगणानी शोभा जेवो. नकामो रह्या जेवो, अने दम वगरनो छे. छेल्ली पंक्तिमा (जे.) सेसउ वजं(= वजिय ! ) सारु । (भं.) सेसउ तडियसारु । रत्नप्रभसूरिनो संक्षेप (पा. ५३) :पाश्चात्ययामे केनापि गुर्जरपथिकेन गीतम् ।धवल इव योऽत्र विधुरे स्वजनो नो भारकर्षणे प्रवणः स च गोष्ठांगणभूतलविभूषणं केवलं भवति ॥ ५. आनन्दवर्धन ना ध्वन्यालोकमांथी :-(वि. सं. नवमा सैकानो मध्यभाग). आ दुहो निर्णयसागरनी आवृत्तिमां अतिभ्रष्ट छे. ६, शीलांकाचार्यनी सूत्रकृतांगनी टीकााथी. (वि. सं. १० मा सैकाना प्रथमार्धमां ) जुओ. जीतकल्प ( सं. जिनविजयजी ) नी प्रस्तावना पा. २९; वळी जेसलमेरभंडारनी सूचि (G.O.S.) नं. ४३, ४४. नीचे प्रमाणे आगमोदयसमितिनी आवृत्तिमां प्रस्तुत गीत माटे पूर्वापर संबंध छे:४. स्त्रीपरिज्ञा । उद्देश. १ । १०. अह सेऽणुतपई पच्छा, भोच्चा पायसं व विसमिस्सं । एवं विवेगमादाय, संवासो नवि कप्पए दविए ॥१०॥ इत्येवं बहुप्रकारं महामोहात्मके कुटुम्बक्टके पतितो अनुतप्यते ॥ किं च-'अह से' इत्यादि । अथासौ साधुः स्त्रीपाशावबद्धो मृगवत् कूटके पतितः सन् कुटुम्बकृते अहर्निशं क्लिश्यमानः पश्चादनुतप्यते, तथाहिगृहान्तर्गतानामेतदवश्यं संभाव्यते तद्यथा-- कोद्धायओ को समचित्तु । ... काहोवणाहिं काहो दिजउ वित्त। को उग्घाडउ परिहियउ परिणीयउ को घ कुमारउ

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