Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society

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Page 294
________________ २. उद्धरणवस्तुः भविसयत्तकहा एटले भविष्यदत्तनी कथा. गजपुर नामे नगर हुतुं. त्यां धनपति नामे नगरशेठ ( रायसिटि) रहेतो हतो. ते ज नगरमा हरिबल नामे बीजो वणिक रहेतो हतो. एक दिवस धनपति हरिबलने घेर गयो भने त्यां हरिबलनी दीकरी कमलश्री प्रति तेनी दृष्टि गई. हरिबलनी पासे धनपतिए तेनी दीकरी माटे मागुं मोकल्युं जे स्वीकारायु, अने कमलश्री अने धनपतिनां लग्न थयां. तेमने भविष्यदत्त नामे पुत्र थयो. केटलोक समय वीत्यो; अने पूर्वजन्मनां कोई कर्मथी धनपतिनो प्रेम कमलश्री परथी ओसरी गयो. एक दिवस धनपतिए कमलश्रीने कडवां वेण कह्यां अने तेने तेना पिएर चाली जवा का. ते पोताना पितृगृहे गई. धनपति सरूपा नामे धनदत्तशेठनी दीकरीने परण्यो. तेनाथी तेने बंधुदत्त नामे पुत्र थयो. बंधुदत्त यौवनमां आव्यो त्यारे ते धंधा माटे परदेश नीकळ्यो. भविष्यदत्त पण माताने नहि गमवा छतां तेनी साये वेपार माटे नीकळ्यो. तेओ तिलकद्वीप नामे द्वीप पर आवी पहोंच्या. भविष्यदत्तने दूर गएलो जोई, बंधुदत्त पोतानां वहाण हंकारी गयो. आ चोथा संधिमां भविष्यदत्तने तिलकद्वीपमां केवी रीते लाभ थयो तेनी कथा कहेवामां आवी छे. भविष्यदत्त हाथपग धोई, कमल लई आवी जुवे छे त्यारे ते वहाण चाल्यां गएला देखे छे. तेने बहु ज शोक थाय छे. (१) भविष्यदत्त पोताना भाई बंधुदत्तनी हीणी वंचना उपर विचार करे छे. पोताना हृदयने दृढ करी, खलदैवने पडकार करी ते वनमां चालवा मांडे छे. (२) भविष्यदत्त गहन वनमा प्रवेशे छे. ते वन पंखी अने सावजथी भरपूर छे. छेवटे अतिमुकलताना मण्डपमां वृक्ष नीचे शिलातल उपर ते बेसे छे. (३) सूर्य आथमे छे; संध्या थाय छे; एटले हाथ पग धोई, कुसुम लई, जिननी ते अर्चना करे छे. भयंकर रात्रिनुं वर्णन कवि करे छे. (४) सवार पडे छे, भविष्यदत्त एक जूनो मार्ग जुवे छे. तेने शुभं शुक्नो थाय छे. ते मागे जवानो ते निश्चय करे छे. (५) आ प्रमाणे गिरिकन्दरानी प्रदेश अने श्यामतमालपूर्ण वनने ओळंगी प्रासाद, प्रतोली इत्यादिथी सुशोभित भने धवलित गृहोथी विराजित छतां निर्बनिक एक नगर ते जुवें छे. (६) नगरनुं वर्णन कवि करे छे. त्यां मंदिर हतां पण पूजक कोइ न हता. कुसुमं हां परन्तु वास लेनार कोइ न हता. आ प्रकारचें नगर जोई भविष्यदत्त विस्मित थाय छे. (७) आ प्रकारनुं ज वणेन चालु. अर्धे उघाडां बारणां अने बारीओवाळां गृहो, पण्य वस्तुओथी भरपूर बजारो ते जुवे छे; परन्तु त्यां कोइ रहेनार के खरीदनार नथी. आखो देखाव शोकजनक लागे छे. परन्तु ते शुभचिहो जुवे

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