Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society

View full book text
Previous | Next

Page 319
________________ -जेथी जारपुत्र, दुर्जन अने दुष्ट घोडो एनी आगळ के पाछळ जवानुं शक्य धतुं नथी. ४८-५२. सुर्जननिंदा पूरी करी, सज्जनप्रशंसा कवि आरंमे छे, आ पंक्तिभोमां सज्जननी सरखामणी राजहंस साथे करी छे; राजहंस अने सज्वर पन्ने य विशुद्धोभयपक्ष ( राजहंसपक्षे-जेनी बने य पांख सफेद होय-छे; सज्जनपक्षे-जेनुं पिता अने माता बन्नेयर्नु कुल विशुद्ध होय-छे.) अने (सज्जन पक्ष-शब्दने छ्टा करी समजवानी शक्तियुक्त, अने राजहंसपक्षे-क्षीरनीरविवेकनी शफियुक, अर्थ छे); तो य एकाएक भयंकर मेघाडम्बर चढी आवे तो मानस सरोवर पहोंचवानुं दुःख हंसने थाय छे [अत्रे मानसिक दुःख थाय छे एवा पण अर्थनो ध्वनि छे]. ज्यारे सज्जन तो मेघ जेवा श्याम अने भाडम्बरी खलोनो स्वभाव जाणे छे एटले तो ते ज्यारे तेमनां आक्रमण थाय त्यारे तेनो मायनो समजी हसतो ज बेसे छे. ५०-५१ दुहो छ भने पं.४७-४८ अने पं. ५२नी साथे ते एक ज वाक्य अमावे के. तेना संबंधे मूळनी नीचे आपेली टीप जुओ.. ५२-५५, आ पंक्तिमा सज्जनने पूर्णिमाचन्द्र साथे सरखाववामां आव्यो छे. ते बन्ने य सकल कलाथी ( सज्जनपक्षे-कलाओ Arts. चंद्रपक्षे-तेनी सोळ कळाओ Digits ) पूर्ण अने माणसोना मनने भानंद आपनार होय छे. तो य चन्द्र तो कलंकथी दूषित होय छे भने अभिसारिकाओना मनने पीडा आपनार होय छे ( कारण के चन्द्र कामोत्पादक तो होय छे अने अभिसारिका चन्द्रना प्रकाशमा देखाई अवाना भये पोताना प्रियतमने मळवा जई शकती नथी.); ज्यारे सजन तो निष्कलङ्क अने सर्व जनने सुख आपनार होय छे. दिहि-धृति सुख, सरखावो उद्धरण ३. पं. १६. ५५-५८. सज्जनने मृणाल (=कमळनो पेलो) साथे सरखाव्यो छे. बन्नेय ने पीले तो य तेमना स्नेह-तंतु (सृणालपक्षे-तेनी चीकट रेषाओ; सज्जनपक्षे-प्रेमनो बंध )नो घरो यतो नथी अने बन्ने य खूब शीतळ होय छे; छतां य मृणाल तो खजुरी लगाडे तेवा स्वभाक्नो, अने जड (='जल' पर श्लेष सरखावो. उद्धरण ५. पंकि १.०)ना संसर्गमां उछयों छे; ज्यारे सज्जन तो मधुर स्व. भावनो अने जेनो रख विदग्धजने वर्धित कयों छे तेवो छे. ५९-६२. सज्जनने दिशागज साथे सरखाव्यो छे. बन्ने य स्वभावे उसत (गजपक्षे-उंचो, सज्जनपक्षे-उमदा) छ, भने बन्नेयमांथी अटकया विना

Loading...

Page Navigation
1 ... 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386