Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society

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Page 320
________________ दान (गजपक्षे-मद; सज्जनपक्षे-दान को प्रसर बयाज करे छे; तेमा य दिशागजनुं तो मदविकारथी ( श्लेषे करीने-मदन आगमन थाय ते समये ) वदन श्याम थाय छे; पण सज्जनने तो मद थत्तो नथी, अने दान देतां तो तेनुं बदनकमल विकसे छे. ६१-६५. सज्जनने मुक्काहार साथे सरखान्यो छे. बन्नेय स्वभावे विमल (मोतीपक्षे-श्वेत; सज्जनपक्षे-शुद्ध) होय छ; अने बन्ने बहु उत्तम गुण (मोतीनी माळाना पक्षे-दोरा) युक्त छे. पण मुक्ताहार तो सेंकडो छिद्रोथीभरचक अने बनमा (=पाणी; श्लेषे 'बनमां उछरेलो ' एम अर्थ आ वाक्यना छेल्का भागमा लेवानो छे) उछरेलो छे; ज्यारे सज्जन तो कोइ पण छिद्र (=दूषण) विनाना गुणधी भरपूर छे भने नगरमां उछरेलो नागरिक छे. ६५-६९. सज्जनने समुद्र साथे सरखाव्यो छे. बन्ने य गंभीर (समुद्र पक्षे-उंडा) स्वभावना अने मोटा अर्थ ( समुद्रपक्षे-रत्नोथी भरेलो, महाव्यवान; सज्जनपक्षे-महान हेतुवाळो) वाळा छे. पण समुद्र तो उत्कलिका-(वीचिओ, चिताओ )शतथी भरपूर छे अवे नित्य कलकल-अवाजथी (ककळाटथी) बाजुए उभेला जनोने दुःख आपे छे-एम जाणे दुःखी स्थितिए पामेला कुटुंबचें अनुकरण करे छे. सज्जन तो धीर स्वभावनो होय छे भने मष नेवां मधुरा वचनोथी लोकोने आनंद आपे छे. ७०-७१. सज्जनगुणप्रशंसाना उपसंहारनी गाथा छे. ॥ एकादशमुद्धरणम् ॥ प्रस्तुत उद्धरण माटे नीचेना प्रमाणो लीधा छे. तेना संकेतशब्द पण कौंसमां आध्या छे: (1) S. P. Pundit's Edition of विक्रमोर्वशीय (पं.) । (2) R. Pischel: Materialien zur Kenntnis des Apabhrams'a. P. 57-64, (पी.) (3) Nirnayasagar Edition with Ranganath's Commentary (र.) (४) दि. ब. के. इ. ध्रुव : पयक्रमनी. असादी (धुव.) .

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