Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society
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रणमा कुल १६ गीत छे. आ सोळ गीतमा ३, ८, ९, ११, १३ उक्तिओ नथी, ज्यारे बाकीनां १२ गीत पुरुरवा राजानां उन्मादवचनो छे. आखी परिस्थितिनुं वातावरण भने उक्तिनी परमताने लईने ज 'पुरुरवानां उन्माद. पचनो' ए अभिधान उद्धरणने आपवामां आव्यु छे. २. टिप्पणः
१-२ उपदोहक ॥ १२+११ ॥ छ. शा. पा. ४२ (अ); बीजी पं. क्तिमा रं. अने तेने अनुसरी पं. 'णु.' टीकामा रं. नु निश्चयार्थे । लखी आ प्रमाणे अर्थ करे छे “ ज्यारे सरेखर नूतन विद्यत्थी विराजित श्यामल मेघ वरसे छे, त्यारे मृगलोचनी उर्वशीने कोइ राक्षस हरी जाय छे एम में जाण्यु." प्रो. पीशल नु बदले न वांचे छे. एक तो आ गीत विभावना पछोनी स्थितिने वर्णवतुं छे अने वळी जाव-यावत् ने घटाववानुं छे. एने मेघनी विभावना अने उर्वशीने हरी जता राक्षसनी भ्रान्तिनो निरास 'फोरां शरीरे भडता' थाय छे. एटले ज "ज्यां सुधी नव विद्युत्थी विराजित श्यामल मेघ वरस्यो नहि त्यां सुधी तो में जाण्यु के कोइक निशाचर मृगलोचनाने हरी जाय छे!"
३-६. अनन्तरे चर्चरी एम नाटकमा निर्देश करी, मा अपभ्रंश गीत लखवामां आव्यु छे. चर्चरीनी व्याख्या रं. प्रमाणे:-दुतमध्यलयं समाश्रिता पठति प्रेमभरानटी यदि । प्रतिमण्ठकरासकेन या द्रुतमध्या प्रथमा हि चर्चरी ॥ आम ते एक प्रकारनो नृत्तविशेष छे. प्रा.पि.पा.५२३मा चर्चरी छन्द आप्यो छे, तेनी साथे आने काइ लेवादेवा नथी. छन्द २० मात्राना चार चरणनो छे. पं. ३मां बे मात्रा वधारे छे. जइ ने दूर करी मेळ लावी शकाय.
३. एमई (र.) ए इति संबोधने एवमर्थं वा । (पी.) एँ मई वांची अनेन मया । खरी रीते एमई-इदानिम् । अपभ्रंशमा प्रचलितरूप लेवा योग्य छे.
४. (२) तच्छे वांचे छे. टीका 'मइं तच्छे जंजु इत्यादयः अहं, तदा; यद् यद् इत्याथै देश्यशब्दाः । बंगालनी हाथप्रतो तब्बे वांचे छे. एज रूप प्रा. पिनां उदाहरणमा भने दोहाकोशमां पण आवे छे, तच्छेना जेयो प्रयोग कोइ अर्वाचीन देश्यभाषामां नथी एटले ते अस्वीकार्य छे.
___ ७-१० आ उक्ति नथो पण वर्णनात्मक ध्रुवा छे. प्रा.पि. (पान.२१०) मां वर्णवेलो भडिल्ला छन्द लागे छे. १६ मात्रानुं चरण अने छेल्ली बे मात्रा लघु ए तेनुं लक्षण छे. पं. ५. ८. नियम प्रमाणे मळे छे. कदाच एम पण

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