Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society
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॥ चतुर्दशमुद्धरणम् ॥ आ उद्धरणमा प्रकीर्ण अवतरणो मापवामां आव्या छ. १. वि. सं. ६४५ पहेलांचें :
आ गीत वसुदेवहिंडी नामे प्राकृतग्रंथमाथी लेवामां आव्युं छे. आ ग्रंथना अस्तित्वनी साख आचार्यश्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणे तेमना विशेषणवती नामे अद्यावधि अप्रकाशित एक प्रकरणप्रन्थमां नीचेनी गाथाओमा भापी छे:
सामाइयजुत्तीए उसभस्स धणादओ भवा सत्त होति य पिडिज्जंता बारस वसुदेवचरियम्मि ॥ ३३ ॥ संखेवत्था जुत्तीए, सत्त इयरे सहाणुभूय त्ति सिज्जंसेणऽक्खाया, होसु वि संपिडिया सन्चे ॥ ३२ ॥ वसुदेवहिंडीने वसुदेवचरिय पण कहेवामां आवतुं (जुओ व. हिं. पा. १. पं. १६. ). श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणना समय संबंधे श्रीजिनविजयजी लखे छे. " खास कांइ विरोधी प्रमाणो नजरे न पडे, त्यां सुधी पट्टावलियोमां जे वीरसंवत् १११५-विक्रम संवत् ६४५ नी साल एमना माटे लखेली छे, तेनो स्वीकार करीए तो कशी हरकत नथी.” (जीतकल्पनी प्रस्तावना,पा.१६.) गीतनो अर्थ:
धम्मिल परण्यो छतां अध्ययनप्रवण चित्त राखी, विषयोपभोगमा आसक थतो नहि. एक दिवस धम्मिलनी सासु तेने घेर आवी. तेनी पत्नीए पोतानी मा आगळ पोतानुं दुःख रडवा मांडयु:
(धम्मिल्ल) पोतानी पासे पाटी (= काष्ठपष्टिका, चतुरनिका ) गोठवी, रेवाना पाणीथी भरेली, शशीनी कान्ति समान उज्जवल खडीने लईने, उद्विम अने एकली सूतेली मारी प्रत्ये पण भाखी रात समान-सवर्ण गोखे छे.
कप्पि, गेहेप्पि अपभ्रंश संबंधक भूतकृदंत.
रेवापयपुणियं धम्मिल्ल कुशाप्रपुरनो हतो; कुशाप्रपुर कदाच रेवाकांठानगर होय तेथी रेवानो अत्रे उल्लेख होय ए संभवित छे.

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