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(११) बधा य इन्द्रियव्यवहार कर; पण मनने तो शन्यतामा ज लीन कर; एम कर्या विना एकलो रही (शून्यताथी विमुख रही ) तारो व्यवहार चलावीश नहि. (१२) गुरुनो उपदेश मरुस्थलीमां अमृत जेवो छे. (१३) शास्त्रो भणी माणस पोताने पंडित कहेवडावे छे; परंतु ते मूर्ख पोतानां जन्ममरणने विनाश्यां नथी. (१४) गुरूपदेशथी जीवन्मुक्ति प्राप्त करनार कोइक ज होय छे. (१५) विषयोने विशुद्ध करी तेने भोगववामां वांधो नथी; कारण के तेम कर्या विना केवळ शून्यना आचरणथी जेम वहाणनो कागडो समुद्र उपर ऊडवा जाय पण पाछो वहाण उपर ज आवे, तेम ते विषयने ज पुनः वळगे छे. (१६) माटे ज मीन, पतंगियुं, हाथी, भ्रमर अने हरण- जूथ जो. सरह कहे छे, हे मूर्ख विषयासक्तिने बंधनरूप मा कर. (१७) हे पंडितजन, आमां शंका न करशो; जे ज्ञान गुरुए मने आप्युं छे, तेमां शुं हुं एवं सुगोप्य कहुं छु ? (१८) घोर अंधकारमा जेम चंद्ररूपी मणि प्रकाश आपे छे, तेम सहज सुख एक ज क्षणमां बधां य पाप हरी ले छे. (१९) घरमा पण न रहीश अने वनमां पण न जईश; कारण के ज्यां त्यां सत्तास्वरूप बुद्धि छे ते जाण; ज्यां बधु य शून्यतामय छे स्यां भव क्या अने निर्वाण क्या ? (२०) घरमां के वनमा खरूं ज्ञान नथी; ए एक भेदी वस्तु जाण. स्वभावना निर्मलत्वमा वेने शोध; ते एकलं ज अविकल छे. (२१) आ आस्मा छे अने आ सनात्मा छे; एम जे कोइ भावना करे छे, तेणे बंध विना आत्माने बद्ध को छे; जो के भात्मा तो पण विमुक्त ज छे. ३ छंदोरचनाः
__ कडी. १-५, ७, ९, १२. पादाकुलक । १६ मात्रा- एक चरण; अने एवां चार चरण.
कडी. ६. डॉ. शहिदुल्लाना अभिप्राये, आ एक ज कडी त्रण जुदी जुदी कडीओ छ; अने ते त्रणे य कडीओने ते दोहा कहे छे. परतु सामान्यतः दोहानुं लक्षण १३ + ११ = २४ एम होय छे. ज्यारे प्रस्तुत कडीमां 'छप्पा 'नी रीतने अनुसरी, ११ मात्रा पछी यति आवे छे अने त्यार पछी १३ मात्रा आवे छे.वळी २ + ४ + ४ + ४ + ४ + ४ + २ (~~) = २४ मात्राआ प्रमाणे प्रा. पिं. पा. १७७ उपर छे. परंतु प्रा. पिं मां छप्पानी उपसंहारात्मक पाकओ २८ मात्राना उल्लालानी मूकवी जोईए जे अहिं नथी. अहिं तो २४ मात्रानी बीजी पंक्तिओ प्रमाणे ज उपसंहारात्मक पंक्तिओ मूकी के. मा उपरथी आ एक प्रकारनो 'छप्पय' होय एम लागे छे.