Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society

View full book text
Previous | Next

Page 290
________________ ६३ वैरतृप्ति माटे मुनिने चारे य मंत्रीओ मारवा गया; परन्तु देवताना प्रतापथी तेओ स्तंभित थई गया. राजाए सवारमां आ जोयुं अने ते सर्वेने देशपार कर्या. नागपुर - हस्तिनागपुरम बहि भा वखते पद्मरथ राजानो मंत्री थयो हतो. अकंपन मुनि आव्या पूर्वनुं अपमान संभारी तेमनो नाश करवा ते तैयार थयो. आखा वृर्तात माटे जुभो जिनसेननुं हरिवंशपुराण. सर्ग. २०. थोडा फेरफार साधे आ वृत्तांत वसुदेवहिंडि अंश. १ पान १२८. १९. नियमरणियमणु पोतानी बुद्धिने कुंठित करनार, १९७. ( प ) हउं उज्जमु खवमि किं दुज्जणि । १००. ओलग्गिउ जुओ दे. नो. १. १६४. सेवयअपहाबलेसु ओलुग्गो । आ ओलुग्ग शब्द परथी नाम - क्रियापद बनावी तेनुं कर्मणि भूतकृदन्त ओलग्गिड थना सम्भव थे. तेनो अर्थ सेवा. मूळ शब्द अवलग्न होना संभव छे. अलग्ग = सेवा पा. स. म. नोंधे छे. अहिं ओलग्गिउ वचनना अर्थमा पण होई शके. = २०४. (प०) मृगवहु. २०६. जंगलु=मांस. (प० ) अडवि अड्डड्इ | मूळनो अर्थ बंधबेसतो वधारे छे. २०८. (प०) जणउच्छिउ पाठ सारो छे. २०९. बहलिय - रेणु ने बदले ( प ० ) बहलयरेण । २१०. पयडिय भीसणवसणहं ने बदले पयडियभीसणवसणहं ए पाठ उत्तम छे. २२७. जंपाण पालखी. २३२. सरखावो. ह. पु. २०. ५३. मेरावेकक्रमो न्यस्तो द्वितीयो मानुषोत्तरे । अभावादवकाशस्य तृतीयोऽभ्रमदंबरे ॥ मानुषोत्तर पर्वत के जे पुष्करार्धने फरतो छे अने तेनी अढी द्वीपनी सीमा गणावे छे. तेना पछी मनुष्यवास नथी. ते १७२१ योजन उंचो १४३० योजन १ गाउ डंडो अने १०३२ योजन पहोलो डे. २३७. पद्मरथ राजा सत्ताथी छकेला द्विजकिंकर बलिने मारवा कहे छे. परन्तु विष्णु तेने क्षमा आपे छे अने रोष न करवा कहे छे. १३९. णरयविवरि पइसिज्जह । (प०) सत्तममहि पाविज्जइ

Loading...

Page Navigation
1 ... 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386