Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society
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१०. महिं षष्ठी बहुवचननो प्रत्यय हुं छे. तृतीया अने सप्तमी बहुवचननो प्रत्यय हिं छे. (सि. हे. ८|४| ३४७ |) मयहिं = मृतानाम् ए नवं ज षष्ठीनं बहुवचननुं रूप छे.
११. घई अपभ्रंशमां वपरातो अनर्थक निपात. सि. हे. ८|४|४२४ |
मायहे षष्ठी एकवचन नारीजाति; सरखावो तहे = तस्याः | सि.हे. ८|४|३८२ | नुं दृष्टान्त.
षष्ठीमाथी द्वितीयामां संक्रान्ति, जेम नरजातिना षष्ठीना प्रत्यय होनी थई तेम. सरखावो मार्कण्डेय प्रा. स. १७. ११.
१२. दुर्जनना पक्षे 'हंमेश ककळाट करावनारो' अने 'पोला देखकर पेस जाना ' ए नीतिने अनुसरनारो. सरखावो पंक्ति ९. उपर टांकेलं सुभाषित ' छिद्रं निरूप्य सहसा प्रविशत्यशंकम् ।
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१३-१६. कागडाना कर्कश ध्वाननी उत्तमता ए छे जे प्रोषितपतिकाने arast तेनाथी शुभ आगमनना शुकन आपे छे; अने छिद्रोमांधी तो कागडो पोताना आहारपूरतुं ज ले छे; ज्यारे दुर्जन प्रोषितपतिका व्याकुल स्त्रीओने पोताना कर्कशध्वनिथी शारी नाखी दुःख पेदा करे छे, अने ते बीचारीओनां कांइ पण छिद्र के दूषण न होय छतां य तेमना जीवितने हणे छे.
१६-२१. दुर्जननी अने गर्दभनी सरखामणी करे छे. अइमुत्तय= सामान्य रीते अतिमुकलता एटले. मोगरो; परन्तु कोइ कोइ स्थळे ' द्राक्षनो वेलो.' पण अर्थ थाय छे. गर्दभ तेने खाई शकतो नथी तेथी मनमां ज बळ्या करे छे. जायलिय = जाता रूप जोवा जेवुं छे.
२१ - २४. कालसर्पनी साथे दुर्जनने कवि सरखावे छे. दुर्जन अने साप बन्ने य पारकानां छिद्र (दुर्जनपक्षे, अन्यनां दूषणो, सर्पपक्षे, बीज प्राणीए खोदेलां दर) शोघे छे अने बन्नेयनो कुटिलगतियुक्त ( दुर्जनपक्षे - कपटनीतिथी भरपूर जीवनचर्या वाळो; सर्पपक्षे - वांकीचूंकी रीते सरकी पूरो करातो ) मार्ग छे. छतां य दुर्जन करतां एक रीते सर्प उत्तम छे; कारण के सर्प तो पारकानां खोदेलां दर शोधे छे, पोते दर खोदतो नथी; अने कुटिल गतिथी चाले छे पण पोतानी गतिथी शरमातो होय एम पेटथी चाले छे - ज्यारे दुर्जन तो पोते ज बीजामां छिद्रो उत्पन्न करे छे अने जाणे अभिमानी ( थड्ढो - स्तब्धः भूत कृदन्त</स्तम्भ अभिमान करवु ) होय तेम चाले छे.

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