Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society

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Page 300
________________ ७४. कर्तरि वर्तमानकृदंतने स्थळे: कर्मणि वर्तमानकृदन्त एटले प्रविशता ने बदले प्रविश्यमान > पविस्समाण. Ber ७९. हेत्वर्थने ं बदळे संबंधकभूतकृदन्त - पूज्जिऊण. त्या ते (मनुष्य) न हतो जे पूजवाने माटे ( तेनौ अंदर ) दृष्टि करे. ' 5 ८०. पसूण प्रसून; गुणे- याकोबी पसुअ; पसूअ स्वीकार्य छे. दे. ना. ६. ९. कुसुमे पस्अ । ८७. संबंधक भूतकृदन्तने स्थाने हेत्वर्थ तोडिउं. ८९. प्रो. गुणे “ There was no cne who would be affected by others' riches, covet it, take it to himself and think about doubters उपरना अर्थमां ण लुब्भए ना ण =not नो अर्थ क्यां ? वळी अप्पणम्मि अप्पनी छाया प्रो. गुणेनी दृष्टिए " आत्मनि अर्पयेत् " थाय. वियप्परसु एक शब्द तरीके वांचवानुं सूचन ते करे छे. आ प्रमाणे करेली अर्थनी कल्पना दूराकृष्ट छे. अर्थ:- "पारकानुं धन जोईने भवि व्यदत्त क्षुब्ध थाय छे पण लोभातो नथी; पोतानी मेळे विकल्पो करे छे अने ते चिंतें छे." अप्पधर्मा चोथीनो ए प्रत्यय आत्मनेनो अवशेष; अने आत्मन् नुं • अप्प अने अप्पणमाथी अप्पनो स्वीकार; आमांथी अप्पर रूप बन्युं . ९०. पुत्तिचोज्जु - चोज्जु = आश्वर्य दे. ना. ३. १४. गू. मां मा बेटुं' - ' मारी बेटीनुं ! एम आश्चर्यवाचक उद्गार वपराय छे. तेवो ज भा उद्गार छे. 'पुत्तिष' ' अम्वर ' ए आश्वर्यदर्शक उद्गारो अपभ्रंशमां सामान्य छे. जुओ पाहुडदोहा. १०८. ९१. वाहि मिच्छतं जणं दुरक्खसेण खद्धयं । दलाळ गुणेनी वाचना बरोबर नथी; तेमज प्रो. गुणेए तेमनी टिप्पणमां के कोषमां कांइ समजाव्युं नथी. ' व्याधि, म्लेच्छ, खराब राक्षसथो ते माणस खवाई गया हशे !' आश्चर्योद्गार होवाथी वाहि अने मिच्छना तृतीया प्रत्ययो त्यजी दई - दुक्खसेणना प्रत्ययथी चलावी लीधुं होतुं जोईए. ९३. याणिमोनुं आखं वाक्य कर्म होवाथी जं पहुं अने कहँ गयं विभक्ति होवा छतां तेनी कर्मविभक्ति करी अव्यवस्था आणी छे. इत्थु जु पहु आसि सु कहं गउ ण याणिमो एम खरी रीते हो जोईए. अथवा तो छन्द खातर पण पहुनी जाति बदली होय. ९८. छन्द साचववा फलअद्धुग्धाडियगवक्खरं । गवने सुजेवो वांबो it by १०

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