Book Title: Apbhramsa Pathavali
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Gujarat Varnacular Society

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Page 314
________________ आ उपरांत आ प्रन्थनी आदिप्रशस्तिमां पण अपभ्रंशनो उल्लेख छ, पाययभासारइया मरहट्ठयदेसिवण्णयणिबद्धा सुद्धा सयलकह च्चिय तावस-जिण-सत्थवाहिल्ला ॥ कोऊहलेण कथइ परवयणवसेण सक्कयणिबद्धा किंचि अवब्भंसकया का विय पेसायभासिल्ला॥ आ प्रमाणे अपभ्रंश एक विकसित अने संस्कृत अने प्राकृतनी पंक्तिमा बेसवा योग्य भाषा तरीके उदद्योतनसूरिए गणी छे. आ उपरांत अपभ्रंश दोहा 'पण आ कथामां स्थळे स्थळे देखा दे छे. प्रस्तुत अपभ्रंशपाठावलीना चौदमा उद्धरणमां भमे बे दुहाओनी नोंध लीधी छे. आ उद्धरणमां पण बे दुहामी छ जे वाचक जोई शकशे. एटले के वि. सं. ८३५मां तो क्यारनी य अप. भ्रंश साहित्यभाषा थई चकी हती. भाषासम्बन्धी बीजी बाबत जे आपणने कुवलयमालामांथी प्राप्त थाय छे ते देश्यभाषाओ सम्बन्धी माहिती. संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंशना त्रण महानदोनी आगळ पाछळनी भूमिमां देश्यभाषाओना स्रोत वहेता हता. आना 'पूरावा आपणने कुवलयमालामाथी प्राप्त थाय छे. सामान्यतः श्वेतांबर आगमअन्थोमा अढार देशी भाषाओना उल्लेख आवे छे. (जुओ, G.P. Ein.30.). आ अढार देश्यभाषाओने उद्द्योतने बोली-प्रकारना टंकां उदाहरण मापी समजावी छे. ( ताडपत्र पत्री. १३१-१३२) आ विषयने लगती गाथाओ बीजा लेखकोए नोंधी छे एटले अत्रे तेने टांकी विस्तार करवो अनावश्यक छे. (जुओ. अ. का. त्र. संस्कृत प्रस्तावना पान. ९१-९४; पं. बेचरदास प्राकृतव्याकरण प्रवेशक, पान १८-२४). पण आ उपरांत केटलीक देश्योकिना आखा फकरा ने फकरा आ प्रन्थमां मालम पडे छे. तेवं एक दृष्टांत ताडपत्र पोथी, पत्र ५१. भांडारकर प्राच्यमन्दिरनी प्रत भने अ. का. त्र. प्रस्तावना पान. १८९-११०ने सरखावी नीचे टांक्यु छे ते जो: तउ भणियं एक्केण गाम-महत्तरेण, “एउ एहउं होउ मणुस्साहं सब्बु एउ आयरिङ । तुज्झा -णउ वंकु वलियउ। प्रारद्धउं एउ प्रइ सुगइ । भ्रातु चर भ्राति संप्रद ।" तओ अण्णेण भणियं,

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