Book Title: Jyotish Granth
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमावस्यामायावत् पाश्रमासी विधनियेत नवग्यात्ययापारी यावत्सलवार। यहा प्रकुरीत तह सपनते नहि चतुषी बाघ प्रहरी वा हसियतस्य विवर्जयेत् / हर सवसतो यसमा महाव्यभवेत मवयोगान प्रबदमाम वस्ति मनाविदित अविना व्यतीपातः परिघोवनरब च। 'ड: ल च विभीमाप्रातस्य भूपात सतान योगा न समात्रयं हाभावे रेप नही वियते धरिका सिनः पंचवाननियतसी) बनेपटिका स्तिस्रो नववरपरिवन येव / अतिगंडन वै मानववा नायिका / ईछ घटिकाप बाधाते नवमाना। रलेल टिकापच सहावा नयिका वैधतीचं वातीपातेधकाधिविच परि घटिका गित पशाचवा. तेना प्रहका नोषा सस्लिान्या सभांवकर योगा भावहाना रास्तस्थापनकर्मति J . . . For Private And Personal Use Only

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