Book Title: Jyotish Granth
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोमसो तगज वास्त:प्राई सर्वमुखो ध्यनः।। मासे गोभक्तोषमत्र में हियो गोपनी करपुष्यः पुनर्वस मृगोष्यां श्ररिस्वातीनणी यूर्वाभराश्रय रोहियपाधिरणस्तोता नवरस्तसा / अती स्पस्या मध्याभर मलष्ठयोः। सुरदासपोवर मरण नरराक्षसोः / अपराक्ते व्ययःमःआयादानस्वाभारः अविना राक्षसोसाय:वनस्पध्वज बना। शान्तरस्योद्याता श्रीयानसामनरहर श्रीवत्सोविवाधितात्यायवापाःस्मतः आगाविस्तरमपमूलरागिरतटस्मतः। मूलरात्रौवार्य शिकागहनामालिन्च) विभक्तेयःोमस स्थादिताहिक क्रोमानपोरेन्द्र प्रासाप्रतिमाहिए। यो दो चमारवटहवेवस।। रजवान रहे जनहिरवाजालये।। वास्तुननरत्रामस्तनमत) स्वामिलाममा तम्ले तारकामानित। विच सपायानतात्यायसान्यावहा: रातमनोहरारमिकलरुवता। परनारसीतारामजनमानवमीस्मता।। For Private And Personal Use Only

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