Book Title: Jyotish Granth
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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar 4. प्रासावरतोस्था त्यात प्रासाजीरहे। . विसरणतो नकुपिष्ठतः) विष्ठावमि विधेचंडियताम्।। द्वतोदष्पमध्येत घागमनपरुपेत वद्विग्रहाहिवास्तूलामिछेअदा(सदीती। प्रागत्तरे सर्वतो वायनान्यतोरहम्। रहावयगे? सर्वभाव विवयेत् / प्रायमित्रवैर माम्बीरहे। पश्रिमेश: स्यात स्वतोपरे। अग्नेयेन सेवसमुतयः। वयरिसरूप (महलोपशानदास्पस yिावलाभानी-शरणस्तुचतर्गत बासाहपापली परिवार जिंगस्यागपत्यक्त्वा यह कयौन होगह। यामत सेवन-वास्दना वस्तुसवरात्रि राससस्त्र प्रवेस्पनर वापः। अय:-क्रव्यासायावती तस्मादीनंच तत सतत वियस परवति।। श्रेज!-तापितधारस्रोधेरोजयतेमस) कृतान यत्रीय गवाहालकमारिच।। तबसविनेनवनिवान्नाविनियति। For Private And Personal Use Only

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