Book Title: Jain Bhajan Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 5
________________ महामंत्र- नवकार प्रार्थना नवकार मंत्र है महामंत्र,इस मंत्र की महिमा भारी है। आगम में कही, गुरुवर से सुनी, अनुभव में जिसे उतारी है ॥टेर।। अरिहंताणं पद पहला है, अरि आरति दूर भगाता है। सिद्धाणं सुमिरन करने से,मन इच्छित सिद्धि पाता है। आयरियाणं तो अष्ट सिद्धि और नव निधि के भंडारी हैं।।नव.॥1॥ उवज्झायाणं अज्ञान तिमिरहर, ज्ञान प्रकाश फैलाता है। सव्वसाहूणं सब सुखदाता, तन मन को स्वस्थ बनाता है। पद पाँच के सुमरिन करने से, मिट जाती सकल बीमारी है ॥नव.॥2॥ श्रीपाल सुदर्शन मेणरया, जिसने भी जपा आनंद पाया। जीवन के सूने पतझड़ में, फिर फूल खिले सौरभ छाया। मन नंदन वन में रमण करे, यह ऐसा मंगलकारी है।।नव.॥3॥ नित नई बधाई सुने कान, लक्ष्मी वरमाला पहनाती। 'अशोक मुनि' जयविजय मिले, शांति प्रसन्नता बढ़ जाती। सम्मान मिले, सत्कार मिले, भव-जल से नैया तारी है ॥नव.॥4।।

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