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चौमासी
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ख्यान ॥
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माथतो नथी, केवळ अद्धर ज लटकी रहे छे.
तेर
स्वरूप
इलापुत्र विचार करे छे के धन्य छे ! आ महात्माने के मदनमंदिर कहेता कामदेवना घरना समान आ स्त्री छे, 5 काठीयानुं सी तेना सन्मुख पण आ मुनि जोता नथी. तो विषयवांच्छा तो आ महात्माने क्यांथी ज होय ! धन्य छे ! अहो ! अहो ! क्यां आ निर्विषयी महात्मा अने क्यों हुं विषयनो कीडो पापी जीवडो ! अरे रे म्हारी स्थिति खराबमां खराब जे दुष्टमां दुष्ट छे, कहां छे के
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अजानन् दाहात्म्ये पतति शलभस्तीवदहने, स मीनोप्यज्ञानाद्वडिशयुतमश्नाति पिशितं । विजानतोऽप्येते वयमिह विपज्जालजटिला, न मुंचामः कामानहह गहनो मोहमहिमा ॥ १ ॥ भावार्थ:- पतंगीयो एम जाणतो नथी के हुं अग्निने विषे पडीश तो मरण पामीश, तेथी अजाण एवो पतंगीयो अग्निने विषे पडी मरण पामे छे. मीन-माछलुं जे छे, ते पण वडिश एटले मत्स्यने पकडवाना कांटाने नहि पीछाणता ते कांटाना अग्र भागपर मांस अगर लोटना पिंडने स्थापन करी पाणिमां नाखी राखी धिवरो बेसे छे, तेनुं भक्षण करवा आवेल माछलुं जेतुं मोतुं लगावे छे के तत्काल ते वींधाइ जह मरण पाने छे अने अजाणता ज मरण पामे छे, परंतु अमो तो जाणता छतां ज आपत्तिना समूहवडे करी व्याप्त थयेला कामोने मुकी शकता नथी, तो अहाहा ! मोहनो महिमा महा गहन गंभीर रहेलो छे.
हवे इलापुत्र वैराग्य रंगीत यह विचार करे छे के, क्यां आ निर्विषयी मुनि महात्मा ने क्यों हुं मोहग्रस्त विषयनो
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