Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru
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महादुःख थाय छ, बली देवांगना रुष्टमान थवाथी अने रीसावाथी पण महादुःख देवोने थाय छे. तथा बीजा महर्द्धिक देवताओनी देवांगना, रत्नो, विगेरे उठावी लाववाथी ते देवताओ प्रहार करे छे, तेनी पण वेदनानुं दुःख छ मास सुधी रहे छे. तथा वर्गथी च्यवन समय जाणी, कंपायमान थयेलो, स्वर्ग सुखना सरणने करतो, मल-मूत्रथी भरपुर भरेला अशुचिमय गर्भने विषे जवानुं जाणी, महादुःखने भोगवे छे, माटे देवताओने पण सुख नथी. एवी रीते नरक, तियंच, मनुष्य अने देवगतिमां, पण दुःख ज छे, एम जाणी भव्य जीवोने मोक्ष मेलववा अति आदरसहित धर्मने सेवन करवो, ते ज कल्याणकारी छे.
वली जन्म, जरा, मरण, व्याधि, वियोग, शोक, दुःखादिकथी संपूर्ण भरेल आ संसारने विषे, अष्ट प्रकारना कर्मोवडे करी जीव अनादिकाल सुधी परिभ्रमण करे छे. तेमां ज्ञानावर्णी, दर्शनावर्णी, वेदनी, मोहनी, आयु, नाम, गोत्र अने अंतराय ए आठ प्रकारना ज्ञानी महाराजाये कर्म कहेला छे. तेमां पांच, नव, बे, अठावीश, चार, बेंतालीश, बे अने पांच, ए उपरोक्त आठे कर्मोनी अनुक्रमे उत्तर प्रकृति कहेली छे अने मिथ्या दर्शन, अविरति, कषाय, योगो, ते सर्वे बंधना हेतुभूत छे, अने ओपथी नीचे प्रमाणे कहेला छे. प्रत्यनीकपणुं, अंतराय, उपघात, तत्प्रद्वेष, निन्हवपणुं, विगेरे, ज्ञानावर्णीय अने दर्शनावर्णीय कर्मने बंधावनारा छे. तथा प्राणियोने विषे अनुकंपा करनार, तथा | जिनेश्वर महाराजनी भक्ति संयुक्त, तथा क्षमा, दान, दया, विनयने विषे तत्पर जीव,शाता वेदनीय कर्मने बांधे छे अने ते थकी विपरीत अशाता वेदनीय कर्मने बांधे छे, तथा अरिहंत, सिद्ध, चैत्य, तीर्थादिकने विषे, प्रत्यनीक, शत्रुपणुं,
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