Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru
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पोताना पासे रहेली विशेष वस्तु पोताना अभिग्रह करेल देशथी स्थानांतरे मुकाववी, ते प्रेष्यप्रयोगः २ कोइक कार्यथी बोलावतो देखी, पोताना कार्यने माटे शब्द करीने बोलाववो ते शब्दानुपातः ३ तेज प्रकारे बीजाना प्रत्ये पोतानुं रूप देखाडं ते रूपानुपात: ४ अभिग्रह करेल देशना व्हार कार्य जणाववा माटे, पथ्थर आदिनो प्रक्षेप करवो ते पुद्गलक्षेपः ५
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ed अग्यारमा पौषधतने विषे पांच अतिचारोने कहे छे. नहि पडिलेहण करेल, तथा बराबर तपास नहि करता, जेवी तेवी रीते उपर चोटली प्रतिलेखना करेल, पाट अने संथारा उपर संथारो करवो १, पूज्या विनानी पाट तथा संथारा उपर संथारो करवो २. भूमिशुद्धि जोया विना अशुद्ध भूमिना उपर लघुनीति वडीनीति परठरवी ३. प्रमार्जन कर्या विनानी श्रद्ध अशुद्ध भूमिने विषे लघुनीति वडीनीतिने परठववी ४. प्रातःकालने विषे हुं अमूक प्रकारना आहारने बनावीश ए प्रकारनी ठी. चितवना करवी.
बारमा अतीथि संविभागने विषे पांच अतिचारोने कहे छे. साधुने पोताना घर तरफ आवता देखी दान नहि आपवानी बुद्धिथी, आपवा लायक द्रव्यने सचित वस्तुना उपर स्थापन करवु १. सचित्त फलादिक वस्तुने आपवा लायक पदार्थ उपर ढांकवी २. मोदकादिक द्रव्य पोतानुं होय छतां परनुं छे एम कहेवु. ३. आ दरिद्री छे तोपण दान आपे छे, तो तेनाथी षां हुं शुं हीन छु, एवी रीते मात्सर्य धरीने दान आप. " आहार लावीने आहार करी रहेला अने आहार करता एवा साधुओने कहेतुं के, जेम म्हारो अभिग्रह पण भांग्यो नहि अने साधुओ वस्तुओने पण ग्रहण करता नथी एवा प्रकारे कहेतुं ते. ५
ए प्रकारे बार व्रतोना साठ अतिचारो थया, सर्वेने एकत्र करवाथी १२४ अतिचारो थया. ते अतिचारोने विषे जे कोह

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