Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 171
________________ 卐Ayyy卐卐g4 मरणना फेरा टाले छे. अणाहारी पद आपे छे, अनंत सुखने आपे छे अने जीवने अनंतकाल सुधी विश्रांति पण बक्षीस करे छे, माटे ते मेळववानो ज म्हारे प्रयत्न करवो जोइये, चपल चित्त करवाथी-रमण स्वभाव करवाथी-क्रीडामा जीव राखवाथी, लोभ दशामा मन जोडवाथी अने संसारनी प्रपंच जालमा फसावाथी, कोण माणस आखो उगरेलो छ ? कोण माणस मरणथी बचेलो छ, अने कोणे वास्तविक सुख मेळवेलं छे ? बस कोइये नहि ? आवी रीते भावना दृढ थवाथी हवे धर्म श्रवण करवा बेठो. ते समये गुरु महाराजे जे उपदेश दीधो ते तेने संपूर्ण लाभदायक थयो. मोह राजाने खबर पडवाथी पुंछडं लइ मनुष्य नगरी छोडी दइ, अनार्य देशमा जइ निवास कर्यो. इंहां गुरुजी धर्मदेशना देवा मांडया, जीवोने धर्म ते ज गुणकारी छे. धर्म अनेक प्रकारे कया छे-दान, शीयल, तप अने भावनाथी पण धर्म थायछे, मार्गानुसारी गुणोथी पण धर्म थाय छे. परोपकार करवाथी पण धर्म थाय छे. मांस, मदिरा, माखण, मधनो त्याग करवाथी धर्म थाय छ, अभक्ष्य अनंतकायना भक्षणने छोडवाथी धर्म थाय छे. त्याक अने रात्रि भोजनादिक त्याग करवाथी पण धर्म थाय छे. होको, बीडी, चुंगी, नेचो, कोकीन, गांजो, तमाकु विगेरे केफी वस्तुओनो त्याग करवाथी पण धर्म थाय छे. जुगार, सट्टो, शीकार, वेश्या, परस्त्री त्याग करवाथी पण धर्म थाय छे. हिंसा, असत्य, चोरी, परिगृह, छल, प्रपंच, विश्वासघात, कूडी साक्षी, कूडा खतपत्र विगेरे अन्यायी कार्यो छोडी देवाथी धर्म थाय छे. गंजीफा, सोगटाबाजी विगेरे रमवाने छोडी देवा तेमां पण धर्म थाय छे, अहारे पापस्थानना मार्गो छोडी देवाथी धर्म थाय छे, विना कारणे वनस्पतिर्नु छेदन-भेदन करवानुं छोडी देवाथी धर्म थाय छे, पाणि गळीने पीवा वापरवाथी धर्म थाय छे, नौकारशी, पोरसी, एकासगुं, बेसj, आंबेल,

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