Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 125
________________ 卐943933 हवे पंदर कर्मादानना अतिचारो नीचे प्रमाणे बतावे छे. पोतानी आजीविका चलाववा माटे, लाकडाने बाळी तेना | अंगारा कोलसा करवा, तथा तेने वेचवा, तथा इंटो आदिकने पकाववी. ते अंगार कर्म कहेवाय १. वृक्षादिकना पत्रो, पुष्पो, फलो इत्यादिकने छेदवा-छेदाववा अने तेओने वेचवादिक कर्म जे करवा ते वनकर्म कहेवाय २. गाडा आदिक, तथा तेमना अंगादिक एटले पैडा, धोंसरा, विगेरे बनाववा अने वेचवा, ते शकट कर्म कहेवाय ३. गाडा तथा बलदादिकोने भाडे आपवा विगेरे, ते भाटक कर्म कहेवाय ४. हल तथा कोदालादिकथी भूमिने खोदवी, तथा पथ्थर आदिने घडवा, तथा जयवादिक धान्यादिक जे होय, तेने मुंजवादिकनी क्रिया करवी, ते स्फोटक कर्म कहेवाय ५. प्रथमथी ज म्लेच्छादिक वर्गने द्रव्यादिक आपी, हस्तियोना दांत आदिने मंगाववा अने वेचवा, तेम ज पोते जइने लाववा अने व्यापार करवो, वेचवा, | ते दंतवाणिज्य कहेवाय. ६. लाख, गळी, मणशील इत्यादि तथा सडी गयेला धान्यादिकनो व्यापार करवो, वेचवो, ते | लाक्ष वाणिज्यादि कहेवाय. ७. मद्य, मांस, घी, तेल इत्यादि जे रस पदार्थों छे, तेनो व्यापार करवो, तेने वेचवा ते रसवाणिज्य कहेवाय ८. जेना भक्षण करवाथी मनुष्यो मरणने पामे, ते विष कहेवाय अने एवा विषनो जे व्यापार करवो ते विष व्यापार कहेवाय ९. वे पगवाला अने चार पगवाला जीवादिकनो व्यापार करवो, ते केश वाणिज्य व्यापार कहेवाय १०. तल तथा शेलडी आदिने यंत्रना अंदर पीलवा, ते यंत्र पीलनकर्म कहेवाय ११. बलदादिकना वृषणो, तथा कर्णादि| कने छेदन करवा, ते निलांछन कर्म कहेवाय १२. क्षेत्रादिकना अंदर अग्नि लगाडी बालवा ते दवदाहन कर्म कहेवाय १३. गहु, जुवार आदिनो पोंक पाडवो अने सरोवर, द्रहादिकनो शोष करवो ते प्रसिद्ध छे, ते कहेल छे. १४ असती, तेम ज

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